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[आवश्यक सूत्र अरिहन्त-पद-भाव-वन्दना पहले पद णमो अरिहंताणं' श्री अरिहंत भगवान, जघन्य बीस तीर्थङ्कर जी उत्कृष्ट एक सौ साठ तथा एक सौ सित्तर देवाधिदेव जी उनमें वर्तमान काल में बीस विहरमानजी महाविदेह क्षेत्र में विचरते हैं। एक हजार
आठ लक्षण के धरणहार, चौतीस अतिशय, पैंतीस वाणी कर के विराजमान, चौसठ इन्द्रों के वन्दनीय, पूजनीय, अठारह दोष रहित, बारह गुण सहित (1) अनन्त ज्ञान, (2) अनन्त दर्शन, (3) अनन्त चारित्र, (4) अनन्त बल वीर्य, (5) दिव्य ध्वनि, (6) भामण्डल, (7) स्फटिक सिंहासन, (8) अशोक वृक्ष, (9) कुसुम वृष्टि, (10) देव-दुन्दुभि, (11) छत्र धरावें, (12) ●वर बिजावें, पुरुषाकार पराक्रम के धरणहार, ऐसे अढ़ाई द्वीप पन्द्रह क्षेत्र में विचरते हैं । जघन्य दो क्रोड़ केवली उत्कृष्ट नव क्रोड़ केवली, केवल ज्ञान, केवल दर्शन के धरणहार, सर्वद्रव्य, क्षेत्र, काल और भाव के जाननहार हैं।
ऐसे श्री अरिहन्त भगवान, दीन दयाल महाराज, आपकी दिवस सम्बन्धी अविनय आशातना की हो तो हे अरिहन्त
भगवान ! मेरा अपराध बारम्बार क्षमा करिये, मैं हाथ जोड़, मान मोड़, शीश नमाकर तिक्खुत्तो के पाठ से 1008 बार वन्दना नमस्कार करता हूँ।
तिक्खुत्तो आयाहिणं पयाहिणं करेमि, वंदामि, नमसामि, सक्कारेमि, सम्माणेमि, कल्लाणं, मंगलं, देवयं, चेइयं, पज्जुवासामि, मत्थएण वंदामि ।
आप मांगलिक हो, आप उत्तम हो, हे स्वामिन् ! हे नाथ! आपका इस भव, पर भव, भव भव में सदाकाल शरण होवे।
अरिहन्त भगवान के 12 गुण-इन 12 गुणों में से अनन्त चतुष्ट चार घाति कर्मों के क्षय से प्राप्त होते हैं और शेष 8 देवकृत होते हैं। जिन्हें अष्ट महाप्रतिहार्य कहते हैं।
अशोकवृक्षः सुरपुष्पवृष्टि-दिव्यध्वनिश्चामयसनं च ।
भामण्डलं दुन्दुभिरातपत्रं, सत्प्रतिहार्याणि जिनेश्वराणाम् ।। अनन्त ज्ञान-केवलज्ञान-ज्ञानावरणीय कर्म के क्षय से। अनन्त दर्शन-केवलदर्शन-दर्शनावरणीय कर्म के क्षय से।
अनन्त चारित्र-क्षायिक सम्यक्त्व, यथाख्यात चारित्र।
1. 1. श्री सीमंधर स्वामी जी, 2. श्री युगमन्धर स्वामी जी, 3. श्री बाहु स्वामी जी, 4. श्री सुबाहु स्वामी जी, 5. श्री सुजात स्वामी जी, 6. श्री
स्वयंप्रभ स्वामी जी, 7. श्री ऋषभानन स्वामी जी, 8. श्री अनन्तवीर्य स्वामी जी, 9. श्री सूरप्रभ स्वामी जी, 10. श्री विशालधर स्वामी जी, 11. श्री वज्रधर स्वामी जी, 12. श्री चन्द्रानन स्वामी जी, 13. श्री चन्द्रबाहु स्वामी जी, 14. श्री भुजंग स्वामी जी, 15. श्री ईश्वर स्वामी जी, 16. श्री नेमप्रभ स्वामी जी, 17. श्री वीरसेन स्वामी जी, 18. श्री महाभद्र स्वामी जी, 19. श्री देवयश स्वामी जी, 20. अजितवीर्य स्वामी जी।