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[आवश्यक सूत्र शरीर सम्पदा, 4. वचन सम्पदा, 5. वाचना सम्पदा, 6. मति सम्पदा, 7. प्रयोगमति सम्पदा और 8. संग्रह परिज्ञा सम्पदा सहित निश्चल समकिती, निकट भवी, शुक्ल पक्षी, मोक्ष-मार्ग के सारथी इत्यादि अनेक गुणों से विराजमान हैं।
ऐसे श्री आचार्य जी महाराज! न्याय पक्षी, भद्रिक परिणामी, परम पूज्य, कल्पनीय, अचित्त वस्तु के ग्रहणहार, सचित्त के त्यागी, वैरागी, महागुणी, गुणों के अनुरागी, सौभागी हैं। ऐसे श्री आचार्य जी महाराज आपकी दिवस सम्बन्धी अविनय आशातना की हो तो हे आचार्य जी महाराज ! मेरा अपराध बारम्बार क्षमा करिए । मैं हाथ जोड़, मान मोड़ शीश नमाकर तिक्खुत्तो के पाठ से 1008 बार वन्दना नमस्कार करता हूँ।
तिक्खत्तो आयाहिणं पयाहिणं करेमि, वंदामि, नमसामि. सक्कारेमि. सम्माणेमि. कल्लाणं. मंगलं. देवयं, चेइयं, पज्जुवासामि, मत्थएण वंदामि ।।
आप मांगलिक हो, आप उत्तम हो, हे स्वामिन् ! हे नाथ! आपका इस भव, पर भव, भव भव में सदाकाल शरण होवे।
आचार्य महाराज के 36 गुणों का उल्लेख ग्रन्थों में भिन्न-भिन्न प्रकार से आया है। उनमें से एक प्रकार का उल्लेख ऊपर किया गया है। दशाश्रुत स्कन्ध में आचार्य महाराज के 8 सम्पदाओं का उल्लेख है। प्रत्येक संपदा के 4-4 भेद होने से 32 भेद एवं 4 शिष्यों के प्रति कर्त्तव्य इस प्रकार भी आचार्य के 36 गुण कोई-कोई गिनते हैं।
उपाध्याय-पद-भाव-वन्दना चौथे पद ‘णमो उवज्झायाणं' श्री उपाध्याय जी महाराज 25 गुण करके विराजमान, ग्यारह अंग, बारह उपांग, चरण सत्तरी, करण सत्तरी ये पच्चीस गुण करके सहित हैं, ग्यारह अंग का पाठ अर्थ सहित सम्पूर्ण जाने, चौदह पूर्व के पाठक और निम्न बत्तीस सूत्रों के जानकार हैं
ग्यारह अंग-आचारांग, सूयगडांग, ठाणांग, समवायांग, भगवती, ज्ञाताधर्मकथा, उवासगदसा, अंतगडदसा, अणुत्तरोववाइय, प्रश्नव्याकरण, विपाक सूत्र।
बारह उपांग-उववाई, रायप्पसेणी, जीवाजीवाभिगम, पन्नवणा, जम्बूद्दीवपण्णत्ति, चन्दपण्णत्ति, सूरपण्णत्ति, निरयावलिया, कप्पवडंसिया, पुप्फिया, पुप्फचूलिया, वण्हिदसा।
चार मूल सूत्र-उत्तराध्ययन, दशवैकालिक, नन्दीसूत्र और अनुयोगद्वार सूत्र ।
चार छेद-दशाश्रुत स्कन्ध, वृहत्कल्प, व्यवहार सूत्र, निशीथ सूत्र और बत्तीसवाँ आवश्यक सूत्रतथा अनेक ग्रन्थों के जानकार, सात नय, चार निक्षेप, निश्चय, व्यवहार, चार प्रमाण आदि स्वमत तथा