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[आवश्यक सूत्र संस्कृत छाया- नमोऽस्तु अर्हद्भयो भगवद्भय आदिकरेभ्यस्तीर्थकरेभ्य: स्वयंसंबुद्धेभ्य: पुरुषोत्तमेभ्यः
पुरुषसिंहेभ्यः पुरुषवरपुण्डरीकेभ्यः पुरुषवरगन्धहस्तिभ्यो लोकोत्तमेभ्यो लोकनाथेभ्यो लोकहितेभ्यो लोकप्रदीपेभ्यो लोकप्रद्योतकरेभ्यः, अभयदयेभ्यश्चक्षुर्दयेभ्यो मार्गदयेभ्य: शरणदयेभ्यो जीवदयेभ्यो बोधिदयेभ्यो धर्मदयेभ्यो धर्मदेशकेभ्यो धर्मनायकेभ्यो धर्मसारथिभ्यो धर्मवरचातुरन्तचक्रवर्तिभ्यो द्वीपस्त्राणं शरणं गतिः प्रतिष्ठा अप्रतिहतवरज्ञानदर्शनधरेभ्यो व्यावृत्तच्छद्मभ्यो जिनेभ्यो जापकेभ्यस्तीर्णेभ्यस्तारकेभ्यो बुद्धेभ्यो बोधकेभ्यो मुक्तेभ्यो मोचकेभ्य: सर्वज्ञेभ्य: सर्वदर्शिभ्यः शिवमचलमरुजमनन्तमक्षयमव्याबाधमपुनरावृत्तिसिद्धिगतिनामधेयं स्थानं
सम्प्राप्तेभ्यो नमो जिनेभ्यो जितभयेभ्यः।। शब्दार्थ-नमोत्थु णं = नमस्कार हो, अरिहंताणं भगवंताणं = अरिहंत भगवन्तों को (जो), आइगराणं = धर्म की आदि करने वाले, तित्थयराणं = धर्मतीर्थ (चतुर्विध संघ) की स्थापना करने वाले, सयंसंबुद्धाणं = अपने आप बोध को प्राप्त, पुरिसुत्तमाणं = पुरुषों में उत्तम, पुरिससीहाणं = पुरुषों में सिंह के समान (पराक्रमी), पुरिसवरपुंडरीयाणं = पुरुषों में श्रेष्ठ पुंडरीक कमल के समान, पुरिसवरगंधहत्थीणं = पुरुषों में श्रेष्ठ गंधहस्ती के समान, लोगुत्तमाणं = सम्पूर्ण लोक में उत्तम, लोगनाहाणं = सम्पूर्ण लोक के नाथ, लोगहियाणं = सम्पूर्ण लोक का हित करने वाले, लोग-पईवाणं = लोक में प्रकाशित दीप के समान, लोगपज्जोअगराणं = लोक में धर्म का प्रद्योत (प्रकाश) करने वाले, अभयदयाणं = सम्पूर्ण जीवों को भय रहित करने वाले अर्थात् अभय = दान देने वाले, चक्खुदयाणं = ज्ञान रूपी चक्षु देने वाले, मग्गदयाणं = मोक्षमार्ग बताने वाले, सरणदयाणं = (कुमार्ग से बचाकर सन्मार्ग में लगाने में सहायक भूत होने से) शरण देने वाले, जीवदयाणं = संयममय जीवन देने वाले, बोहिदयाणं = सम्यक्त्व रत्न रूपी बोधि के दाता, धम्मदयाणं = धर्म ग्रहण कराने वाले (धर्म-पथ का बोध देने वाले), धम्मदेसयाणं = धर्मोपदेशक, धम्मनायगाणं = धर्मसंघ का नायकत्व करने से धर्म के नेता, धम्मसारहीणं = धर्म रूप रथ को चलाने वाले धर्म सारथी, धम्मवरचाउरंत = चार गति का अन्त करने वाले श्रेष्ठ धर्म, चक्कवट्टीणं = चक्रवर्ती, दीवोत्ताणं = संसार-सागर में द्वीप के समान रक्षक, सरणगइपइट्ठाणं = दु:खी प्राणियों को आश्रय देने वाले, सुगति में सहायक, पृथ्वी के समान आधारभूत, अप्पडिहय = पुन: नष्ट नहीं होने वाला अप्रतिहत, वरनाणदंसणधराणं = श्रेष्ठ ज्ञान, दर्शन के धारक, विअट्टछउमाणं = छद्मस्थता से रहित, जिणाणं = स्वयं रागद्वेष के विजेता, जावयाणं = दूसरों को जिताने में सहायता देने वाले, तिन्नाणं = स्वयं संसार-सागर से तिरने वाले, तारयाणं = दूसरों को तिराने वाले, बुद्धाणं = स्वयं बोध पाये हुए, बोहयाणं = दूसरों को बोध कराने वाले, मुत्ताणं = स्वयं कर्मों से मुक्त, मोयगाणं = दूसरों को कर्मों से मुक्त कराने वाले, सव्वण्णूणं सव्वदरिसीणं = सब कुछ जानने-देखने वाले, सर्वज्ञ-सर्वदर्शी, सिव-मयल- मरूअ =