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साधुओं के बारह संभोग
(1) उपधि
(2)
( 6 )
श्रुत
निकाचन ( शय्या निमंत्रण)
(10) समवशरण (एक साथ रहना)
( 3 )
(7)
(11)
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[ आवश्यक सूत्र
भक्तपान
(4) अञ्जलि
अभ्युत्थान
( 8 ) कृतिकर्म
संनिषद्या (एक आसन पर बैठना)
(5) दान (9) सेवा
(12) कथा प्रबन्ध
भावना- विविध विचारों से समकित में दृढ़ होना 'भावना' है।
(1) ईर्या समिति-भावना- 'प्राणातिपात विरमण' नामक प्रथम महाव्रत की रक्षा रूप दया के लिए और स्व-पर गुण वृद्धि के लिए साधु चलने और ठहरने में युग प्रमाण भूमि पर दृष्टि रखता, ईर्या समिति पूर्वक चले, जिससे उसके पाँव के नीचे दबकर कीट-पतंग आदि त्रस तथा सचित्त पृथ्वी और हरी लीलोती आदि स्थावर जीवों की घात न हो जाय । चलते या बैठते समय साधु सदैव फूल, फल, छाल, प्रवाल, कन्द, मूल, पानी, मिट्टी, बीज और हरितकाय को वर्जित करता बचता हुआ सम्यक् प्रवृत्ति करे। इस प्रकार ईर्ष्या समिति पूर्वक प्रवृत्ति करता हुआ साधु किसी भी प्राणी की अवज्ञा या हीलना नहीं करे, न निंदा करे और न छेदन-भेदन और वध करे। किसी भी प्राणी को किञ्चित् मात्र भी भय और दुःख नहीं दे । इस प्रकार ईर्या समिति से अन्तरात्मा भावित - पवित्र होती है। उसका चारित्र और परिणति निर्मल, विशुद्ध और अखण्डित होती है। वह अहिंसक होता है । ऐसा अहिंसक उत्तम साधु होता है ।
(2) मन समिति - भावना - अहिंसा महाव्रत की दूसरी भावना मन समिति है । साधु अपने मन को पापकारी-कलुषित बनाकर दुष्ट विचार नहीं करे, न मलिन मन बनाकर अधार्मिक, दारुण एवं नृशंसता पूर्ण विचार करे तथा वध बंधन और पारितापोत्पादक विचारों में लीन भी नहीं बने। जिनका परिणाम भय, क्लेश और मृत्यु है, ऐसे हिंसा युक्त पापी विचारों को मन में किञ्चित् मात्र भी स्थान नहीं दे। ऐसा पापी ध्यान कदापि नहीं करे । इस प्रकार मन समिति की प्रवृत्ति से अन्तरात्मा भावित होती है। ऐसी विशुद्ध मन वाली आत्मा का चारित्र और भावना निर्मल तथा अखण्डित होती है। वह साधु अहिंसक, संयमी एवं मुक्ति-साधक होता है, उसकी साधुता उत्तम होती है ।
(3) वचन समिति - भावना - अहिंसा महाव्रत की तीसरी भावना वचन समिति है । कुवचनों से किञ्चित् मात्र भी पापकारी आरम्भकारी वचन नहीं बोलना चाहिये । वचन समिति पूर्वक वाणी के व्यापार से अन्तरात्मा निर्मल होती है । उसका चारित्र एवं भाव निर्मल विशुद्ध एवं परिपूर्ण होता है। वचन समिति का पालन करके अहिंसक संयमी तथा मोक्ष का उत्तम साधक होता है। उसकी साधुता प्रशंसनीय होती है।
(4) आहारैषणा समिति - भावना - अहिंसा महाव्रत की चौथी भावना एषणा समिति है । आहार की गवेषणा के लिए गृह समुदाय में गया हुआ साधु थोड़े-थोड़े आहार की गवेषणा करे । आहार के लिए गृह