________________
षष्ठ अध्ययन - प्रत्याख्यान ]
मूल
89}
2. पोरिसि-सूत्र (पोरसी)
उग्गए सूरे पोरिसिं पच्चक्खामि, चउव्विहं पि आहारं असणं, पाणं, खाइमं, साइमं, अन्नत्थऽणाभोगेणं, सहसागारेणं, पच्छन्नकालेणं, दिसामोहेणं, साहुवयणेणं, सव्वसमाहिवत्तियागारेणं वोसिरामि ।
भावार्थ-पौरुषी का प्रत्याख्यान करता हूँ । सूर्योदय से लेकर अशन, पान, खादिम और स्वादि चारों ही प्रकार के आहार का एक प्रहर दिन चढ़े तक त्याग करता हूँ। इस व्रत के आगार छह हैं- (1) अनाभोग, (2) सहसाकार, (3) प्रच्छन्नकाल, (4) दिशामोह, (5) साधुवचन, (6) सर्वसमाधिप्रत्ययाकार। इन छह आकारों के सिवाय पूर्णतया चारों प्रकार के आहार का त्याग करता हूँ।
विवेचन-पौरुषी के छ: आगार - (1) अनाभोग (2) सहसाकार - का अर्थ नवकारसी प्रत्याख्यान के अनुसार जानना चाहिए। (3) पच्छन्न-कालेणं - प्रच्छन्नकाल बादल अथवा आँधी आदि के कारण सूर्य के ढँक जाने से पौरुषी आ जाने की भ्रान्ति हो जाना। (4) दिसामोहेण - (दिशामोह) पूर्व को पश्चिम समझकर पौरुषी के न आने पर भी सूर्य के ऊँचा चढ़ जाने की भ्रान्ति से अशनादि सेवन कर लेना । (5) साहुवयणेणं (साधु वचन) - पौरुषी आ गई, इस प्रकार किसी विश्वस्त व्यक्ति के कहने पर बिना पौरुषी आये ही अशनादि कर लेना। (6) सव्वसमाहि-वत्तियागारेणं - (सर्व समाधि प्रत्ययाकार) शूलादि तीव्र रोग (जिससे समाधि भंग हो जाए) की उपशान्ति के लिए औषधि आदि ग्रहण कर लेना ।
मूल
साढ पोरिसी सूत्र - यह भी पौरुषी के समान कह देना, केवल पौरुषी के स्थान पर साड्ढ पौरुषी (डेढ़ पौरुषी) कह देना ।
3. पुरिमडुं-सूत्र (दो पोरसी)
उग्गए सूरे पुरिमड्डुं पच्चक्खामि, चउव्विहं पि आहारं असणं, पाणं, खाइमं, साइमं, अन्नत्थऽणाभोगेणं, सहसागारेणं, पच्छन्नकालेणं, दिसामोहेणं, साहुवयणेणं, महत्तरागारेणं, सव्वसमाहिवत्तियागारेणं वोसिरामि ।
भावार्थ- सूर्योदय से लेकर दिन के पूर्वार्ध तक अर्थात् दो प्रकार तक चारों प्रकार के आहार - अशन, पान, खशदिम, स्वादिम का प्रत्याख्यान करता हूँ। अनाभोग, सहसाकार, प्रच्छन्नकाल, दिशामोह, साधुवचन, महत्तराकार और सर्वसमाधिप्रत्याकार, इन सात आगारों के सिवाय पूर्णतया आहार का त्याग करता हूँ।