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षष्ठ अध्ययन - प्रत्याख्यान ]
93} अग्रेऽपि उपवास द्वयादे' अर्थात् चउत्थभत्त यह उपवास की संज्ञा है। इसी प्रकार आगे भी समझना चाहिये। जितने दिन की तपस्या पच्चक्खानी हो उससे दुगुना करके और दो मिलाने से (इतने) भक्तों का प्रत्याख्यान करना चाहिये । जैसे पचोले में बारसभत्तं । उपवास आदि तपस्या तिविहार और चौविहार दोनों की होती है।
8. दिवसचरिम-सूत्र मूल- दिवसचरिमं पच्चक्खामि, चउव्विहं पि आहारं असणं, पाणं, खाइम,
साइमं अण्णत्थऽणाभोगेणं सहसागारेणं, महत्तरागारेणं,
सव्वसमाहिवत्तियागारेणं वोसिरामि। भावार्थ-दिवसचरम का (अथवा भवरचम का) व्रत ग्रहण करता हूँ, फलत: अशन, पान, खादिम और स्वादिम चारों प्रकार के आहार का त्याग करता हूँ। अनाभोग, सहसाकार, महत्तराकार और सर्वसमाधि प्रत्ययाकार उक्त चार आगारों के सिवाय आहार का त्याग करता हूँ।
विवेचन-चरम का अर्थ 'अन्तिम भाग' है । वह दो प्रकार है। दिवस का अन्तिम भाग हो और भव (आयु) का अन्तिम भाग । सूर्य के अस्त होने से पहले ही दूसरे दिन सूर्योदय तक के लिए चारों आहार का त्याग करना दिवस चरम प्रत्याख्यान है।
भव चरम प्रत्याख्यान का अर्थ है-जब साधक को यह निश्चय हो जाय कि आयु थोड़ी ही शेष है तो यावज्जीवन के लिए चारों या तीनों आहारों का त्याग कर दे । भव चरम का प्रत्याख्यान करना हो तो दिवस चरिमं के स्थान पर 'भव चरिमं बोलना चाहिए।
___9. अभिग्गह-सूत्र (अभिग्रह) मूल- अभिग्गहं पच्चक्खामि, चउव्विहं पि आहारं असणं, पाणं, खाइम,
साइमं, अण्णत्थऽणाभोगेणं, सहसागारेणं, महत्तरागारेणं, सव्व
समाहिवत्तियागारेणं वोसिरामि। भावार्थ-मैं अभिग्रह का व्रत ग्रहण करता हूँ, अतएव अशन, पान, खादिम और स्वादिम चारों ही प्रकार के आहार का (संकल्पित समय तक) त्याग करता हूँ। अनाभोग, सहसाकार, महत्तराकार और सर्वसमाधि प्रत्ययाकार उक्त चार आगारों के सिवाय अभिग्रहपूर्ति तक चारों प्रकार के आहार का त्याग करता हूँ।
विवेचन-अपनी शक्ति के अनुसार प्रतिज्ञा करनी चाहिये । द्रव्य, क्षेत्र, काल, भाव से अभिग्रह चार प्रकार का होता है। जब तक मेरा अभिग्रह पूरा नहीं होता तब तक मेरे चार आहार के त्याग हैं । इसमें अमुक काल भी खोला जा सकता है, जैसे-अमुक अवधि तक मेरा अभिग्रह पूरा नहीं हुआ तो आगे मुझे प्रत्याख्यान पारने का आगार है।