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षष्ठ अध्ययन - प्रत्याख्यान ]
95} (6) असिक्थ-आटे आदि से लिप्त हाथ तथा पात्र आदि का वह घोलन जो छना हुआ हो फलतः जिसमें आटे आदि के कण नहीं हों।
प्रत्याख्यान पारने का सूत्र मूल- उग्गए सूरे........ (जो प्रत्याख्यान किया हो उसका नाम लेना)
पच्चक्खाणं कयं, तंपच्चक्खाणं सम्मं कारणं न फासियं, न पालियं, न तीरियं, न किट्टियं, न सोहियं, न आराहियं, तस्स मिच्छा मि
दुक्कडं। भावार्थ-सूर्योदय होने पर जो नमस्कार सहित या........... प्रत्याख्यान किया था, वह प्रत्याख्यान (मन, वचन) शरीर के द्वारा सम्यक् रूप से स्पृष्ट, पालित, शोधित, तीर्ण, कीर्तित एवं आराधित किया और जो सम्यक् रूप से आराधित न किया हो, उसका दुष्कृत मेरे लिये मिथ्या हो।
विवेचन-स्पृष्टं तथा स्पर्शति प्रवचन सारोद्धार में कहा है-'प्रत्याख्यान ग्रहणकाले विधिना प्राप्तम् ।' गुरुदेव से या स्वयं विधि पूर्वक प्रत्याख्यान लेना । हरिभद्र की आवश्यक चूर्णि में कहा है फासियं नामजं अंतरा न खंडेति' अर्थात् स्वीकृत प्रत्याख्यान को बीच में खण्डित न करते हुए शुद्ध भाव से पालन करना । पालियं (पालित)-प्रत्याख्यान को बार-बार उपयोग में लाकर सावधानी के साथ उसकी निरन्तर रक्षा करना । तीरियं (तीरितं)-लिये हुए प्रत्याख्यान को तीर तक पहुँचाने अथवा लिए हुए प्रत्याख्यान का समय पूरा हो जाने पर भी कुछ समय तक ठहर कर भोजन करना । किट्टियं (कीर्तित)-मैंने प्रत्याख्यान करके बहुत अच्छा किया, इस तरह कीर्तन करना । सोहियं (शोधित)-कोई दूषण लग जाय तो उसकी फिर शुद्धि करना अथवा सोहियं' का संस्कृत रूप ‘शोभित' भी होता है अर्थात् गुरुजनों को, साधर्मिकों को अथवा अतिथि को भोजन देकर फिर स्वयं करना । आराहियं (आराधित)-सब दोषों से दूर रहते हुए विधि अनुसार प्रत्याख्यान की पालना (आराधना) करना।
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