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षष्ठ अध्ययन - प्रत्याख्यान ]
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सन्मुख भोजन करना निषिद्ध है। अतः गृहस्थ आ जाए और वह जल्दी जाने वाला न हो तो साधु को भोजन करना छोड़कर बीच में ही उठकर एकान्त में जाकर पुन: दूसरी बार भोजन करना पड़े तो व्रत भंग नहीं होता है । सर्प और अग्नि आदि का उपद्रव होने पर भी अन्यत्र भोजन किया जा सकता है। सागारिक शब्द से सर्पादिक का भी ग्रहण किया है । गृहस्थ के लिए सागारिक का अर्थ-क्रूर दृष्टि (जिसकी नजर लग जाय) वाले व्यक्ति के आ जाने पर प्रस्तुत भोजन को बीच में ही छोड़कर एकान्त में पुनः भोजन करना पड़े तो कोई व्रत भंग नहीं होता है । प्रवचन सारोद्धार वृत्ति में कहा है- गृहस्थस्यापि येन दृष्टं भोजनं न जीर्यते तत्प्रमुखः सागारिको ज्ञातव्य: । आउंटण-पसारणेणं - (आकुञ्चन प्रसारण) भोजन करते समय कारण विशेष से हाथ, पैर और उपलक्षण से शरीर को भी आगे पीछे हिलाना-डुलाना । गुरु अब्भुट्ठाणेणं - (गुर्वभ्युत्थान) गुरुजन एवं किसी अतिथि विशेष के आने पर विनय सत्कार करने के लिए उठना, खड़े होना, इससे व्रत भंग नहीं होता । पारिट्ठावणियागारेणं- - यह आगार केवल साधु-साध्वियों के ही हैं। विवेक पूर्वक आहार लेने पर भी अगर अधिक जाय तो उसे नहीं परठ करके गुरुदेव की आज्ञा से तपस्वी मुनि को ग्रहण कर लेना चाहिये । 5. एगट्ठाण - सूत्र (एक स्थान )
एगट्ठाणं पच्चक्खामि चउव्विहं पि आहारं असणं, पाणं, खाइमं, साइमं अण्णत्थऽणाभोगेणं, सहसागारेणं, सागारियागारेणं, गुरु अब्भुट्ठाणेणं, (पारिट्ठावणियागारेणं), महत्तरागारेणं, सव्वसमाहिवत्तियागारेणं वोसिरामि ।
मूल
भावार्थ - एकाशन रूप एक स्थान व्रत को ग्रहण करता हूँ। अशन, खादिम और स्वादिम तीनों प्रकार के आहार का प्रत्याख्यान करता हूँ। (1) अनाभोग, (2) सहसागार, (3) सागरिकाकार, (4) गुर्वभ्युत्थान, (5) पारिष्ठापनिकाकार, (6) महत्तराकार, (7) सर्वसमाधिप्रत्ययाकार। उक्त सात आगारों के सिवा पूर्णतया आहार का त्याग करता हूँ ।
विवेचन-इसे एकल ठाणा भी कहते हैं । इसकी सारी विधि एकाशन के समान है लेकिन 'आउंटण पसारणेणं' आगार नहीं है अर्थात् इसमें मुख और हाथ के अलावा शरीर के किसी भी अंगों को हिलाना निषिद्ध है । 6. आयंबिल - सूत्र
आयंबिलं पच्चक्खामि अण्णत्थऽणाभोगेणं, सहसागारेणं, लेवालेवेणं, उक्खित्तविवेगेणं, गिहिसंसद्वेणं, (पारिद्वावणियागारेणं), महत्तरागारेणं, सव्वसमाहिवत्तियागारेणं वोसिरामि ।
मूल