________________
{ 66
[आवश्यक सूत्र __10. प्रतिमाधारी साधु, के पाँव में काँटा लग जाय या आँख में धूल, तृण आदि गिर जावे, तो उसे अपने हाथों से निकाले नहीं।
11. प्रतिमाधारी साधु, सूर्योदय के पहले तथा सूर्यास्त होने पर एक कदम भी नहीं चले (विहार नहीं करे)।
12. प्रतिमाधारी साधु को सचित्त पृथ्वी पर बैठना या सोना कल्पे नहीं तथा सचित रज लगे हुए पैरों से गृहस्थ के यहाँ गोचरी जाना कल्पे नहीं।
13. प्रतिमाधारी साधु, प्रासुक जल से भी हाथ-पाँव और मुँह आदि धोवे नहीं, अशुचि का लेप दूर करने के लिए धोने का निषेध नहीं है।
14. प्रतिमाधारी साधु के मार्ग में हाथी, घोड़ा अथवा सिंह आदि जंगली जानवर सामने आये हो तो भी भय से रास्ता छोड़े नहीं, यदि वह जीव डरता हो तो तुरन्त अलग हट जावे । रास्ते चलते धूप से छाया में और छाया से धूप में आवे नहीं और शीत, उष्ण का परीषह समभाव से सहन करे।
बारह प्रतिमाएँ-(1-7.) पहली से सातवीं प्रतिमा-एक-एक मास की, पहली प्रतिमा-एक दत्ति अन्न और एक दत्ति पानी की, दूसरी प्रतिमा-दो दत्ति अन्न और दो दत्ति पानी की, इस प्रकार एक-एक बढ़ाते हुए सातवीं प्रतिमा सात दत्ति अन्न और सात दत्ति पानी की।
8. आठवीं प्रतिमा-सात अहोरात्रि की-चौविहार एकान्तर तप करे, ग्राम से बाहर जाकर तीन आसन में से एक आसन करे-1. चिता सोवे, 2. करवट सोवे, 3. पलाठी लगाये।
9. नौवीं प्रतिमा-सात अहोरात्रि की-चौविहार एकान्तर तप करे, ग्राम से बाहर जाकर तीन आसन में से एक आसन करे-1. दण्डासन, 2. लकुटासन, 3. उत्कटासन।
10. दसवीं प्रतिमा-सात अहोरात्रि की, चौविहार एकान्तर तप करे, ग्राम से बाहर जाकर तीन आसन में से एक आसन करे-1. वीरासन, 2. गोदुह आसन, 3. अम्बकुब्ज आसन ।
11. ग्यारहवीं प्रतिमा-एक अहोरात्रि की-चोविहार बेला करे, ग्राम से बाहर जाकर पैर संकोच कर हाथ फैलाकर कायोत्सर्ग करे।
12. बारहवीं प्रतिमा-एक रात्रि की, चौविहार तेला करे, ग्राम से बाहर जाकर पैर संकोच कर, हाथ पसार कर, अमुक वस्तु पर दृष्टि लगाकर ध्यान करे । देव, मानव, तिर्यञ्च सम्बन्धी उपसर्ग सहन करे । इस प्रतिमा की आराधना से अवधि ज्ञान, मनःपर्यय ज्ञान, केवल ज्ञान इन तीन ज्ञानों में से एक ज्ञान की प्राप्ति होती है और ध्यान में चलायमान हो जावे तो पागल हो जावे, दीर्घकाल का रोग हो जावे, केवली प्ररूपित धर्म से भ्रष्ट हो जावे।