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[आवश्यक सूत्र अठारहवें बोले-ब्रह्मचर्य अठारह प्रकार का-1 से 9 औदारिक शरीर सम्बन्धी कामभोग सेवे नहीं, सेवावे नहीं, सेवते हुए को भला जाणे नहीं मन, वचन और काया से 3x3 = 9 हुए । इसी प्रकार वैक्रिय शरीर सम्बन्धी नौ भेद जानना इस तरह कुल 18 हुए।।
उन्नीसवें बोले-ज्ञाताधर्मकथांग सूत्र के उन्नीस अध्ययन- 1. मेघकुमार का, 2. धन्ना सार्थवाह और विजय चोर का, 3. मयूरी के अण्डे का, 4. कछुए का, 5. शैलक राजर्षि का, 6. तूम्बे का, 7. धन्ना सार्थवाह और चार बहुओं का, 8. मल्ली भगवती का, 9. जिनपाल और जिनरक्षित का, 10. चन्द्र की कला का, 11. दावानल का (दावद्रव वृक्ष का), 12. जितशत्रु राजा और सुबुद्धि प्रधान का, 13. नन्दन मणिकार का, 14. तेतलीपुत्र प्रधान और सुनार की पुत्री पोटिला का, 15. नन्दी फल का, 16. अमरकंका का, 17. समुद्र अश्व का, 18. सुसमा दारिका का, 19. पुण्डरीक कण्डरीक का। बीसवें बोले-बीस असमाधि स्थान-1. उतावल से चले, 2. बिना पूँजे चले, 3. अयोग्य रीति
व गुरुजनों के सामने बोले, 6. वृद्ध स्थविर मुनि का उपघात करे, 7. साता-रस-विभूषा के निमित्त एकेन्द्रिय जीव हणे (मारे), 8. पल-पल में क्रोध करे 9. हमेशा क्रोध में जलता रहे, 10. दूसरों के अवगुणवाद बोले, 11. निश्चयकारी भाषा बोले, 12. नया क्लेश पैदा करे, 13. दबे हुए क्लेश को वापस जगावे, 14. अकाल में स्वाध्याय करे, 15. सचित्त पृथ्वी आदि से भरे हुए हाथों से गोचरी करे, 16. एक प्रहर रात्रि बीतने के बाद जोर-जोर से बोले, 17. गच्छ में भेद उत्पन्न करे, 18. कलह फैलाकर परस्पर दुःख उपजावे, 19. सूर्योदय से सूर्यास्त तक लाता-खाता रहे, 20. अनैषणिक-अप्रासुक आहार लेवे ।
इक्कीसवें बोले इक्कीस सबल दोष-1. हस्तकर्म करे, 2. मैथुन सेवे, 3. रात्रि भोजन करे, 4. आधाकर्मी भोगवे, 5. राजपिण्ड भोगवे, 6. पाँच बोल सेवे-साधु के निमित्त से खरीदकर लाया हुआ, उधार लाया हुआ, सामने लाया हुआ, मालिक की आज्ञा बिना लाया हुआ, जबरदस्ती छीनकर लाया हुआ, 7. बारम्बार पच्चक्खाण करे और तोड़े, 8. छ:-छः महीने में गण सम्प्रदाय बदले, 9. एक मास में तीन बार सचित्त जल का स्पर्श करे, नदी उतरे, 10. एक महीने में तीन बार माया (कपटाई) करे, 11. शय्यातर पिण्ड भोगवे, 12. इरादा पूर्वक हिंसा करे, 13. इरादा पूर्वक झूठ बोले, 14. इरादा पूर्वक चोरी करे, 15. इरादा पूर्वक सचित्त पृथ्वी पर शयनासन करे, 16. इरादा पूर्वक सचित्त मिश्र पृथ्वी पर शयनासन करे, 17. इरादा पूर्वक सचित्त शिला तथा जिसमें छोटे-छोटे जीव-जन्तु रहे हुए हों, वैसे काष्ठ आदि पर शयनासन करे, 18. इरादा पूर्वक दस प्रकार की सचित्त वनस्पति भोगवे-मूल, कन्द, स्कन्ध, त्वचा, शाखा, प्रवाल, पत्र, पुष्प, फल और बीज, 19. एक वर्ष में दस बार सचित्त जल का स्पर्श करे, नदी उतरे, 20. एक वर्ष में दस बार माया-कपटाई करे, 21 सचित्त जल से हाथ की रेखा तथा बाल आदि भीगे हुए हों उसके हाथ से इरादा पूर्वक आहारादि लेवे और भोगवे।