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चतुर्थ अध्ययन - प्रतिक्रमण]
55} = मैथुन के त्याग से, परिग्गहाओ वेरमणं = परिग्रह-त्याग से, पंचहिं समिईहिं = पाँच प्रकार की समितियों की विराधना से, इरिया समिईए = ईर्या समिति की विराधना से, भासा समिईए = भाषा समिति की विराधना से, एसणा समिईए = एषणा समिति की विराधना से, आयाण-भंडमत्त-निक्खेवणा समिईए = आदान भंड मात्र निक्षेपणा समिति की विराधना से, उच्चार-पासवण = उच्चार प्रस्रवण अर्थात् मल-मूत्र, खेल-जल्ल-सिंघाण = श्लेष्म, शरीर का मल और नाक का सिंघाण (आदि), परिट्ठावणिया समिईए = परठने में हुई अविधि रूप समिति से।।
छहिं जीवनिकाएहिं = छ: काय की विराधना से, पुढवीकाएणं = पृथ्वीकाय की विराधना से, आउकाएणं = अप्काय की विराधना से, तेउकाएणं = तैजस् (अग्नि) काय की विराधना से, वाउकाएणं = वायुकाय की विराधना से, वणस्सइकाएणं = वनस्पति काय की विराधना से और, तसकाएणं = त्रसकायिक जीवों की विराधना से, छहिलेसाहिं = छ: प्रकार की लेश्याओं में हुए दोषों से, किण्ह लेसाए, नील लेसाए = कृष्ण लेश्या से, नील लेश्या से, काउलेसाए, तेउ लेसाए = कापोत लेश्या से, तेजो लेश्या से, पम्ह लेसाए, सुक्क लेसाए = पद्म लेश्या से और शुक्ल लेश्या से, सत्तहिं भयट्ठाणेहिं = सात प्रकार के भयस्थानों से, इहलोगभए = इस लोक का भय, परलोगभए = परलोक का भय, आदाणभए = आदान भय, अकम्हाभए = अकस्मात भय, आजीविकाभए = आजीविका भय, अजसोकिमिभए = अश्लोक भय, मरणभए = मरण भय, अट्टहिं = आठ प्रकार के, मयठाणेहि = मद (अहंकार) के स्थानों से, नवहिं बंभचेर गुत्तीहिं = नव प्रकार के ब्रह्मचर्य की गुप्तियों की विराधना से, दसविहे समणधम्मे = दस प्रकार के श्रमण धर्म का पालन नहीं करने से, एक्कारसहिं उवासग-पडिमाहिं = ग्यारह प्रकार की श्रावक की प्रतिमा (अभिग्रह विशेष का पालन नहीं करने से), बारसहिं भिक्खुपडिमाहिं = बारह प्रकार की भिक्षु की प्रतिमा के पालन से लगे दोषों से, तेरसहिं किरियाठाणेहिं = तेरह प्रकार के क्रिया स्थानों में से किसी स्थान का सेवन किया हो, चउदसहिं = चौदह प्रकार के, भूयगामेहिं = जीव समूहों की विराधना से, पन्नरसहिं = पन्द्रह प्रकार के, परमाहम्मिएहिं = परमाधार्मिक देवों से, सोलसहिं गाहा सोलसएहिं = सोलह गाथा षोडशक अर्थात् सूयगडांग सूत्र के प्रथम श्रुत स्कन्ध के सोलह अध्ययनों से।
सत्तरसविहे असंजमे = सत्तरह प्रकार के असंयम के सेवन से, अट्ठारसविहे अबंभे = अठारह प्रकार के अब्रह्मचर्य के सेवन से, एगूणवीसाए णायज्झयणेहि = उन्नीस ज्ञाता धर्म कथाङ्ग के अध्ययनों से, वीसाए असमाहिठाणेहिं = बीस प्रकार के असमाधि स्थानों के सेवन से, इक्कवीसाए सबलेहिं = इक्कीस प्रकार के सबल यानी भारी दोषों से, बावीसाए परीसहेहिं = बाईस प्रकार के परीषह को सहन नहीं करने से, तेवीसाए सूयगडज्झयणेहिं = तेईस सूत्रकृताङ्ग सूत्र के अध्ययनों से, चउवीसाए देवेहिं = चौबीस प्रकार के देवों की मान्यता नहीं करने से, पणवीसाए भावणाहिं = पच्चीस प्रकार की (पाँच महाव्रतों की) भावना में लगे दोषों से, छब्बीसाए दसाकप्पववहाराणं उद्देसणकालेहिं = छब्बीस उद्देशन दशाश्रुत