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चतुर्थ अध्ययन - प्रतिक्रमण ]
47} संस्कृत छाया- प्रतिक्रामामि चतुष्कालं स्वाध्यायस्याऽकरणतया, उभयकालं भाण्डोपकरणस्याऽ
प्रतिलेखनया दुष्प्रतिलेखनया अप्रमार्जनया दुष्प्रमार्जनया, अतिक्रमे व्यतिक्रमेऽति
चारेऽनाचारे यो मया दैवसिकोऽतिचार: कृतस्तस्य मिथ्या मयि दुष्कृतम् ।। अन्वयार्थ-पडिक्कमामि = मैं प्रतिक्रमण करता हूँ, चाउक्कालं = दिन-रात के प्रथम व अन्तिम प्रहर रूप चारों काल में, सज्झायस्स = स्वाध्याय, अकरणयाए = नहीं करने से, उभओकालं = दोनों काल में (दिन के पहले और अन्तिम प्रहर में), भंडोवगरणस्स = भंड-पात्र और उपकरण की, अप्पडिलेहणाए = प्रतिलेखना नहीं की हो, दुप्पडिलेहणाए = अविधि से प्रतिलेखना की हो, अप्पमज्जणाए = भण्डोपकरण का प्रमार्जन नहीं किया हो, दुप्पमज्जणाए = बुरी तरह से पूँजा हो, अइक्कमे = सदोष (आधाकर्मादि) ग्रहण करने का विचार किया हो, वइक्कमे = सदोष वस्तु लेने की तैयारी की हो, अइयारे = सदोष वस्तु ग्रहण की हो, अणायारे = सदोष वस्तु ग्रहण करके उसको भोगा हो, जो मे = इस प्रकार जो मैंने, देवसिओ = दिन सम्बन्धी, अइयारो कओ = अतिचार (दोष) सेवन किया हो, तस्स मिच्छा मि दुक्कडं = उसका मेरा पाप निष्फल हो।
भावार्थ-स्वाध्याय तथा प्रतिलेखना संबंधी प्रतिक्रमण करता हूँ। यदि प्रमादवश दिन और रात्रि के प्रथम तथा अंतिम प्रहर रूप चारों कालों में स्वाध्याय न किया हो, प्रात: तथा संध्या दोनों काल में वस्त्र-पात्र आदि भाण्डोपकरण की प्रतिलेखना न की हो अथवा सम्यक्-प्रकार से प्रतिलेखना न की हो, प्रमार्जना न की हो, अथवा विधिपूर्वक प्रमार्जना न की हो, इन कारणों से अतिक्रम, व्यतिक्रम, अतिचार अथवा अनाचार लगा हो तो वे सब मेरे पाप मिथ्या-निष्फल हों।
विवेचन-स्वाध्याय-(1) 'अध्ययनं अध्यायः शोभनोऽध्यायः स्वाध्याय' अर्थात् आत्मकल्याणकारी पठन-पाठन रूप श्रेष्ठ अध्ययन का नाम ही स्वाध्याय है।
(2) अभयदेव सूरि ने स्थानाङ्ग सूत्र की टीका में लिखा है- 'सुष्ठु आ-मर्यादया अधीयते इति स्वाध्यायः' अर्थात् भली-भाँति मर्यादा के साथ अध्ययन करने का नाम स्वाध्याय है।
(3) 'स्वमध्ययनम् स्वाध्यायः' अर्थात् किसी अन्य की सहायता के बिना स्वयं ही अध्ययन करना स्वाध्याय है।
(4) ‘स्वस्यात्मनोऽध्ययनम्' स्वयं का अध्ययन करना स्वाध्याय है।
प्रस्तुत सूत्र में स्वाध्याय का मुख्य अर्थ आगमों को मूल रूप से सीखना, सिखाना और परस्पर पुनरावर्तन करना (सुनना) है। स्वाध्याय के 5 भेद हैं-वाचना, पृच्छना, परिवर्तना, अनुप्रेक्षा और धर्मकक्षा । इन सबका समावेश स्वाध्याय शब्द में होता है।