________________
{ 40
[आवश्यक सूत्र मूर्त रूप भी प्रस्तुत करता है। इसमें गमनागमन के समय सूक्ष्म जीव से लेकर बादर जीवों की सूक्ष्मतम हिंसाजन्य पापों के लिए प्रायश्चित्त कर अपनी आत्मा को स्वच्छ निर्मल बनाने का पवित्र सन्देश है।
इच्छाकारेणं संदिसह भगवं, इरियावहियं पडिक्कमामि' वाक्यांश में साधक भगवान से या गुरु महाराज से गमनागमन में लगे हुए पापों की विशुद्धि हेतु आज्ञा लेने का उपक्रम करता है। विनय और नम्रता का कितना उदात्त भाव है कि यदि आपकी इच्छा हो तो मार्ग में चलने की क्रिया रूप पाप से निवृत्त होने के लिए प्रायश्चित्त करूँ ? अपने पापों की आलोचना करने हेतु भी गुरुजन की स्वीकृति । ‘इच्छं इच्छामि, पडिक्कमिउं, इरियावहियाए' वाक्यांश में भगवान की आज्ञा शिरोधार्य कर इस इच्छा को पुन: दोहराया गया है।
'पाणक्कमणे..... मक्कडा संताणा संकमणे' वाक्यांश में सूक्ष्म जीवों का उल्लेख है जैसे बीज, वनस्पति, ओस, कीड़ी, काई, जल, मिट्टी और मकड़ी के जाले आदि।
फिर 'जे मे जीवा विराहिया' में जीवों के प्रति हुई विराधना, उन्हें दी गयी पीड़ा की ओर संकेत है। सम्पूर्ण जीवों को एक साथ लेने की दृष्टि से पाँच जातियों में बाँटा है।
जीवों की हिंसा-विराधना किस प्रकार ? 'अभिहया....ववरोविया' सूत्रांश में जीव हिंसा के दस प्रकार वर्णन किये गये हैं। इतनी सूक्ष्म हिंसा के लिए भी हार्दिक अनुताप । अहिंसा की कितनी बारीकी। अहिंसा के सम्बन्ध में इतना सूक्ष्म व विश्लेषणात्मक विवेचन अन्यत्र मिलना दुर्लभ है।
इस प्रकार उपर्युक्त प्रकार से जीव व उनकी विराधना के भिन्न-भिन्न प्रकारों का उल्लेख कर हृदय से प्रायश्चित्त करते हुए यह कामना अभिव्यक्त की गयी है कि तस्स मिच्छामि दुक्कडं' अर्थात् उसका दुष्कृतपाप मेरे लिये निष्फल सिद्ध होवे । गंदे वस्त्र के साबुन द्वारा स्वच्छ हो जाने की तरह ही, पश्चात्ताप व आत्म निरीक्षण से आत्मदेव भी निर्मल, पाप विमुक्त तथा स्वच्छ-विशुद्ध बन जाता है।
पढमं समणसुत्तं
शय्या सूत्र
(निद्रा दोष निवृत्ति का पाठ) मूल- इच्छामि पडिक्कमिउं, पगामसिज्जाए, निगामसिज्जाए, संथारा
उव्वट्टणाए, परियट्टणाए, आउट्टणपसारणाए, छप्पई-संघट्टणाए, कूइए, कक्कराइए, छिइए, जंभाइए, आमोसे, ससरक्खामोसे, आउलमाउलाए, सोवण-वत्तियाए, इत्थी' विप्परियासियाए, दिट्ठी
1. साध्वी इत्थी के स्थान पर पुरिस बोले।