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[ आवश्यक सूत्र
अब सोते समय स्वप्न अवस्था संबंधी अतिचार कहे जाते हैं- स्वप्न में युद्ध, विवाहादि के अवलोकन से आकुलता-व्याकुलता रही हो, स्वप्न में मन भ्रान्त हुआ हो, स्वप्न में स्त्री के साथ कुशील सेवन किया हो, स्त्री आदि को अनुराग की दृष्टि से देखा हो, मन में विकार आया हो, स्वप्न दशा में रात्रि में आहार-पानी का सेवन किया हो या सेवन करने की इच्छा की हो, इस प्रकार मेरे द्वारा शयन संबंधी जो भी अतिचार किया हो 'तस्स मिच्छा मि दुक्कड़' अर्थात् वह सब मेरा पाप निष्फल हो।
विवेचन-जैन आचार-शास्त्र बहुत ही सूक्ष्मताओं में उतरने वाला है। साधक जीवन की सूक्ष्म सूक्ष्म चेष्टाओं, भावनाओं एवं विकल्पों पर सावधानी तथा नियन्त्रण रखना, यह महान् उद्देश्य, इन सूक्ष्म चर्चाओं के पीछे रहा है । प्रस्तुत सूत्र शयन सम्बन्धी अतिचारों का प्रतिक्रमण करने के लिए है । सोते समय जो भी शारीरिक, वाचिक एवं मानसिक भूल हुई हो, संयम की सीमा से बाहर अतिक्रमण हुआ हो, किसी भी तरह का विपर्यास हुआ हो, उन सबके लिए पश्चात्ताप करने का, 'मिच्छामि दुक्कड' देने का विधान प्रस्तुत सूत्र में किया गया है।
आज की जनता, जब कि प्रत्यक्ष जागृत अवस्था में किए गए पापों का भी उत्तरदायित्व लेने के लिए तैयार नहीं है, तब जैनमुनि स्वप्न अवस्था की भूलों का उत्तरदायित्व भी अपने ऊपर लिए हुए है। शयन तो एक प्रकार की क्षणिक मृतदशा मानी जाती है। वहाँ का मन मनुष्य के अपने वश में नहीं होता। प्रस्तुत सूत्र के प्रारम्भ में सोते समय के कुछ प्रारम्भिक दोष बतलाए हैं। बार-बार करवटें बदलते रहना, बार-बार हाथ-पैर आदि को सिकोड़ते और फैलाते रहना-मन की व्याक्षिप्त एवं अशान्त दशा की सूचना है।
प्रकाम शय्या- 'शय्या' शब्द शयन वाचक है और 'प्रकाम' अत्यन्त का सूचक है; अतः प्रकाम शय्या का अर्थ होता है- अत्यन्त सोना, मर्यादा से अधिक सोना, चिरकाल तक सोना । अथवा प्रमाण से बाहर बड़ी एवं गद्देदार कोमल गुदगुदी शय्या । यह शय्या साधु के कठोर एवं कर्मठ जीवन के लिए वर्जित है।
निकाम शय्या - प्रकाम शय्या का ही बार-बार सेवन करना, अथवा बार-बार अधिक काल तक सोते रहना, निकाम शय्या है ।
उद्वर्तना और परिवर्तना- उद्वर्तना का अर्थ है एक बार करवट बदलना, और परिवर्तना का अर्थ है बार-बार करवट बदलना ।
कर्करायित-‘कर्करायित' शब्द का अर्थ 'कुड़कुड़ाना' है। शय्या यदि विषम हो, कठोर हो तो साधु को शान्ति के साथ सब कष्ट सहन करना चाहिए। साधु का जीवन ही तितिक्षामय है।
सोवण वत्तियाए स्वप्न प्रत्यया अर्थात् स्वप्न के प्रत्यय-निमित्त से होने वाली संयम विरुद्ध मानसिक क्रिया ।