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[आवश्यक सूत्र (10) दुट्ठपडिच्छियं-आगम को बुरे भाव से ग्रहण करना। हरिभद्रीयावश्यक में 'सुट्ठदिण्णं दुट्ठपडिच्छियं' इन दोनों पदों को एक साथ रखा है और उसका अर्थ किया है- 'सुट्ठदत्तं गुरुणा दुष्ठु प्रतीच्छितं कलुषितान्तरात्मना' अर्थात् गुरु के द्वारा अच्छे भावों से दिया गया आगम ज्ञान बुरे भावों से ग्रहण करना ऐसा करने से अतिचारों की संख्या चौदह के बजाय तेरह ही रह जाती है।
___मलधारी श्री हेमचन्द्र सूरि द्वारा विरचित आगमोदय समिति द्वारा विक्रम संवत् 1976 में प्रकाशित हरिभद्रीयावश्यक टिप्पणी पृष्ठ 108 में आगे लिखे अनुसार खुलासा किया है
शङ्का-ये 14 पद तभी पूरे हो सकते हैं जब ‘सुट्टदिण्णं दुट्ठपडिच्छियं' ये दो पद अलग-अलग आशातना (अतिचार) गिने जाए, किन्तु यह ठीक नहीं है, क्योंकि सुष्ठुदत्त का अर्थ है ज्ञान को भली प्रकार देना और यह आशातना नहीं है ?
समाधान-यह शंका तभी हो सकती है जब ‘सुष्ठु' शब्द का अर्थ शोभना रूप से या भली प्रकार किया जाय किन्तु यहाँ इसका अर्थ 'भली प्रकार' नहीं है। यहाँ इसका अर्थ है अतिरेक अर्थात् अधिक है अर्थात् जिसका क्षयोपशम मंद हो-ज्ञान ग्रहण करने की योग्यता कम हो, ऐसे अयोग्य पात्र को अधिक पढ़ाना ज्ञान की आशातना (अतिचार) है।
(11-12) अकाले कओ सज्झाओ-काले न कओ सज्झाओ-जिस सूत्र के पढ़ने का जो काल न हो उस समय उसे पढ़ना । सूत्र दो प्रकार के हैं कालिक और उत्कालिक, जिन सूत्रों को पढ़ने के लिए प्रात:काल सायंकाल आदि निश्चित समय का विधान है वे कालिक कहे जाते हैं। वर्तमान में उपलब्ध 32 सूत्रों में 23 कालिक है। (11 अंग, 7 उपांग, 1 मूल सूत्र और 4 छेद सूत्र कुल 23 कालिक सूत्र) 1 से 11 आचारांग आदि 11 अंग, 12वाँ जंबूद्वीप प्रज्ञप्ति, 13वाँ चन्द्र प्रज्ञप्ति, 14वाँ निरयावलिका, 15वाँ कल्पातवसंसिका, 16वाँ पुष्पिका, 17वाँ पुष्पचूलिका, 18वाँ वृष्णिदशा, 19वाँ उत्तराध्ययन सूत्र, 20वाँ दशाश्रुतस्कंध, 21वाँ वृहत्कल्पसूत्र, 22वाँ व्यवहार, 23वाँ निशीथ सूत्र। जिसके लिए समय की कोई मर्यादा नहीं है वे उत्कालिक कहे जाते हैं। अनुयोग-उत्कालिक 32 सूत्रों में 9 उत्कालिक हैं-5 उपांग, 3 मूल, 1
आवश्यक = 9 (1 औपपातिक, 2. राजप्रश्नीय, 3. जीवाभिगम, 4. प्रज्ञापना, 5. सूर्यप्रज्ञप्ति, 6. दशवैकालिक, 7. नंदी, 8. अनुयोग द्वार, 9. आवश्यक) कालिक सूत्रों को उनके लिए निश्चित समय के अतिरिक्त पढ़ना अतिचार है।
(13-14) असज्झाइए सज्झायं, सज्झाइए न सज्झायं-अपने या पर के (व्रण रुधिरादि) अस्वाध्याय में या चन्द्रग्रहणादि, 4 सन्ध्या, 4 पूर्णिमा, 4 प्रतिपदा, यूपक आदि अकाल में अस्वाध्याय में स्वाध्याय करने को, अस्वाध्याय में स्वाध्याय करना कहते हैं। अस्वाध्याय का कोई कारण न होते हुए भी स्वाध्याय न करना स्वाध्याय में स्वाध्याय न करना अतिचार है।
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