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[आवश्यक सूत्र 'गु' शब्द अन्धकार का वाचक है 'रु' शब्द का अर्थ है-रोकने वाला' आशय यह है कि जो अज्ञान रूपी अन्धकार को रोके, नष्ट करे उसको गुरु कहते हैं।
वंदामि-वचन से स्तुति करना।
नमंसामि-उपास्य महापुरुष को भगवत्स्वरूप समझकर अपने मस्तक को झुकाना अर्थात् काया से नमस्कार करना।
सक्कारेमि-मन से आदर करना। सम्माणेमि-जब कभी अवसर मिले दर्शन कर पर्युपासना करना।
कल्लाणं-'कल्ये प्रात:काले अण्यते भण्यते इति कल्याणम्।' अमरकोष 1/4/25 कल्य' का अर्थ प्रात:काल है और 'अण' का अर्थ है बोलना । अत: अर्थ हुआ प्रातः स्मरणीय । आचार्य हेमचन्द्र अर्थ करते हैं कल्य-नीरुजत्वमणतीति' अर्थात् कल्य का अर्थ है नीरोगता-स्वस्थता । जो मनुष्य को नीरोगता प्रदान करता है वह कल्याण है। ‘कल्योऽत्यन्तनीरुक्तया मोक्षस्तमाणयति प्रापयतीति कल्याण: मुक्ति हेतुः' यहाँ कल्य का अर्थ है मोक्ष (कर्म रोग से मुक्त स्वस्थ) जो कल्य-मोक्ष प्राप्त करावे वह कल्याण है।
___ मंगलं-‘मंगतिहितार्थं सर्पति इति मंगलं' जो सब प्राणियों के हित के लिए प्रयत्नशील होता है, वह मंगल है। मंगति दूरं दुष्टमनेन अस्माद् वा इति मंगलं' अर्थात् जिसके द्वारा दुर्देव-दुर्भाग्य आदि सब संकट दूर हो जाते हैं वह मंगल है। अभिधान राजेन्द्र कोष में मंगलं शब्द का अर्थ इस प्रकार किया गया है- 'मंगं हितं लाति ददाति इति मंगलं' अर्थात् जो सब प्राणियों का हित करे अथवा जीव को संसार समुद्र से पार कर दे उसे मंगल कहते हैं।
देवयं-दैवत का अर्थ देवता है अर्थात्-'दीव्यन्ते स्वरुपे इति देवा' जो अपने स्वरूप में चमकते हैं अर्थात अपने स्वरूप में रमण करते हैं। वे देव हैं।
चेइयं-चैत्य शब्द अनेकार्थक हैं अत: प्रसंगानुसार अर्थ किया जाता है। 'चितीसंज्ञाने' धातु से चैत्य शब्द बनता है, जिसका अर्थ ज्ञान है। 'चित्ताह्लादकत्वाद् वा चैत्या' (ठाणांग वृत्ति 4/2) जिसके देखने से चित्त में आह्लाद उत्पन्न हो वह चैत्य होता है। यह अर्थ भी प्रसंगानुकूल है । गुरुदेव के दर्शन में सभी के हृदय में आह्लाद उत्पन्न होता है । राजप्रश्नीय सूत्र की मलयगिरि कृत टीका में चैत्य शब्द का अर्थ इस प्रकार किया है- चैत्यं सुप्रशस्तमनो-हेतुत्वाद्' मन को सुप्रशस्त, सुन्दर, शान्त एवं पवित्र बनाने वाले । वास्तव में गुरुदेव ही जगत के सब जीवों के कषाय-कलुषित अप्रशस्त मन को प्रशस्त, सुन्दर, स्वच्छ, निर्मल बनाने वाले होते हैं। इसलिए वे चैत्य कहलाते हैं । पूज्य श्री जयमलजी म.सा. ने 'चेइयं' शब्द के 112 अर्थ लिखे हैं। जो कि आगम प्रकाशन समिति ब्यावर द्वारा प्रकाशित औपपातिक सूत्र में हैं।
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