________________
नमोकार मंत्र]
णमुक्कार मंतं
(नमस्कार मंत्र) मूल
णमो अरिहंताणं, णमो सिद्धाणं, णमो आयरियाणं । णमो उवज्झायाणं, णमो लोए सव्व-साहूणं॥ (आर्या छन्द) एसो पंच-णमुक्कारो, सव्व-पावप्पणासणो।
मंगलाणं च सव्वेसिं, पढमं हवइ मंगल|| (अनुष्टुप छन्द) संस्कृत छाया- नमः अरिहद्भ्यः, नमः सिद्धेभ्यः, नम: आचार्येभ्यः, नम उपाध्यायेभ्यः, नमो
लोके सर्वसाधुभ्यः।। एष पञ्चनमस्कारः, सर्वपापप्रणाशनः । मंगलानां च सर्वेषां, प्रथमं भवति
मङ्गलम्।। अन्वयार्थ-णमो अरिहंताणं = अरिहंतों को नमस्कार हो, णमो सिद्धाणं = सिद्धों को नमस्कार हो, णमो आयरियाणं = आचार्यों को नमस्कार हो, णमो उवज्झायाणं = उपाध्यायों को नमस्कार हो, णमो लोए सव्वसाहूणं = लोक में सब साधुओं को नमस्कार हो, एसो = यह, पंच णमुक्कारो = पाँच अर्थात् पाँचों पदों को किया गया नमस्कार, सव्व = पावप्पणासणो = सब पापों का नाश करने वाला है, मंगलाणं च सव्वेसिं = और सभी मंगलों में, पढमं हवइ मंगलं = प्रथम (प्रधान-सर्वोत्कृष्ट-सर्वोत्तम) मंगल है।
भावार्थ-अरिहंतों को नमस्कार हो, सिद्धों को नमस्कार हो, आचार्यों को नमस्कार हो, उपाध्यायों को नमस्कार हो, मानव-लोक में विद्यमान समस्त साधुओं को नमस्कार हो।
उपर्युक्त पाँच परमेष्ठी-महान् आत्माओं को किया हुआ यह नमस्कार सब प्रकार के पापों को पूर्णतया नाश करने वाला है और विश्व के सब मंगलों में प्रथम मंगल है।
विवेचन-जैन परम्परा में नमस्कार मंत्र का बड़ा ही गौरवपूर्ण स्थान है । जो मनन (चिन्तन) करने से दुःखों से रक्षा करता है वह मंत्र होता है। नम: शब्द का अर्थ मत्तस्त्वमुत्कृष्टस्त्वतोऽहमपकृष्टः एतद् द्वयबोधानुकूल व्यापारो हि नमः शब्दार्थः । अर्थात् मुझसे आप उत्कृष्ट हैं, गुणों में बड़े हैं और मैं आपसे