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नमोकार मंत्र ]
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आचार्य - आचार्य का तात्पर्य है वे महापुरुष जो स्वयं पंचाचार का पालन करते हैं और शिष्यों से करवाते हैं । आचार्य सूत्र और अर्थ के ज्ञाता, गच्छ के नायक, गच्छ के लिए आधारभूत, उत्तम लक्षणों वाले समस्त श्रमण वर्ग के अग्रगण्य नेता होते हैं। उनकी आज्ञा से ही संघ का व्यवहार चलता है।
उपाध्याय-उपाध्याय श्रमण वर्ग के शैक्षणिक कार्यों के संचालक होते हैं। सूत्र व्याख्या के क्षेत्र में उपाध्याय का मत अधिकारी मत माना जाता है । उपाध्याय का कार्य स्वयं विमल ज्ञानादि प्राप्त करना तथा अन्य जिज्ञासुओं को द्वादशांगी वाणी का ज्ञान देकर उन्हें मिथ्यात्व से सम्यक्त्व में स्थिर करना है।
साधु जो महापुरुष अहिंसा, सत्य, अस्तेय, ब्रह्मचर्य व अपरिग्रह रूप पाँच महाव्रतों को तीन करण तीन योग से पालन करते हैं और श्रमणोचित गुणों से युक्त होते हैं, वे साधनाशील ही साधु कहलाते हैं। जो पाँच समिति, तीन गुप्ति का विधिवत पालन करते हुए मोक्ष मार्ग की राह में आगे बढ़ते रहते हैं, वे साधु हैं ।