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५ : साध्य और सिद्धि
लक्ष्य निर्धारण जरूरी है
हमारे सामने चार तत्त्व हैं-साध्य, सिद्धि, साधन और साधक। सबसे पहले व्यक्ति को यह सोचना चाहिए कि उसका साध्य क्या है। एक व्यापारी यह सोचता है कि मुझे व्यापार में कहां तक पहुंचना है। एक मैट्रिक-पास विद्यार्थी अपने आगे के अध्ययन के बारे में सोचता है। एक यात्री भी अपना लक्ष्य स्थिर करके चलता है। यह बहुत स्पष्ट है कि लक्ष्य न हो तो साधन बेकार हो जाते हैं, सिद्धि की बात भी बेमानी रह जाती है।
बहुत-से लोग जीवन में लक्ष्यहीन चलते हैं। उन्हें यह भी पता नहीं है कि हमारा जन्म क्यों हुआ है, इस जीवन-यात्रा का अंत कहां है। लक्ष्य की स्पष्टता के बिना दूसरे तत्त्वों की जानकारी भी नहीं हो सकती। शिक्षा का उद्देश्य
एक विद्यार्थी से पूछा जाए कि तुम क्यों पढ़ते हो तो शायद वह इस प्रश्न का उचित उत्तर नहीं दे सकता। डिग्री प्राप्त करने के लिए, आजीविका चलाने के लिए, अच्छा वेतन पाने के लिए, अच्छी लड़की से शादी करने के लिए, पोजीशन के लिए..."अध्ययन करना विद्या का महत्त्व न समझने का परिणाम है। अध्ययन का मूल उद्देश्य इनमें से कोई नहीं हो सकता। ये तो सब गौण बातें हैं। शिक्षा का सही उद्देश्य है-आत्मवान बनना, आत्मा से परमात्मा तक पहुंचना या स्वयं को पहचानना। लेकिन लक्ष्य कौन जाने! स्वयं अध्यापक भी जब यह बात नहीं जानते, तब विद्यार्थी कैसे जान सकेंगे? कौन हूं : कहां से आया हूं : कहां जाऊंगा
लेकिन यह तो निश्चित है कि लक्ष्यहीन विद्या फल नहीं सकती। साध्य और सिद्धि
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