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प्रेरक वचन
• धर्म की बहुत छोटी-सी मर्यादा है - जैसा कहना, वैसा करना । (१) • सबसे श्रेष्ठ और पवित्र धर्म है- सत्य और अहिंसा । (३)
धर्म जीवन का सर्वोच्च तत्त्व है । (४)
• संतोष से बढ़कर संसार में कोई धन नहीं है, त्याग से बढ़कर कोई उपलब्धि नहीं है। (१०)
शांति की चाह सार्वकालिक है, सार्वजनीन है। (१३)
• हर एक संप्रदाय में धर्म हो सकता है, पर संप्रदाय धर्म नहीं है । (१४) • धर्म एक परम वैज्ञानिक तत्त्व हैं। (१४)
• भविष्य उसी धर्म का है, जो जाग्रत है और जाग्रति का पाठ पढ़ाता है। (१५)
• जो कोई मार्ग व्यक्ति को मंजिल तक पहुंचाता है, वह उपादेय है, सही है । (१७)
जहां वैचारिक आग्रह जागता है, वहां सत्य सो जाता है । (१७) व्यक्ति किसी धर्म-संप्रदायविशेष से संबद्ध न होकर भी यदि सन्मार्गी है, सत्यनिष्ठ है, प्रामाणिक है, नैतिक है, चरित्रवान है तो उसकी मोक्ष - प्राप्ति में कोई बाधा उपस्थित नहीं हो सकती। (१७)
यह संभव नहीं है कि आप परिग्रह से तो बंधे रहें और हिंसा से सर्वथा बचना चाहें। (१९)
• जहां ममकार है, वहां अहिंसा नहीं हो सकती। ममत्व की मात्रा जितनी कम होती है, अहिंसा का विकास उतना ही अधिक होता है । (१९) किसने कहा कि अहिंसा कायरों का धर्म है ? अहिंसक में जो वीर वृत्ति होती है, वह एक हिंसक में नहीं हो सकती। (१९)
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