Book Title: Aage ki Sudhi Lei
Author(s): Tulsi Acharya
Publisher: Jain Vishva Bharati

View full book text
Previous | Next

Page 369
________________ • मैत्री का विकास ही शांति का वास्तविक आधार है। (२७७) • शांति का एकमात्र मार्ग धर्म है, संयम है। (२७९) जिसके मन में पाप के प्रति ग्लानि नहीं होती, वह नास्तिक या अधार्मिक होता है। (२८१) जिसके मन में पाप का भय रहता है, वह आस्तिक या धार्मिक होता है। (२८१) • अप्रमत्तता महानता का लक्षण और आत्म-विकास का सबसे महत्त्वपूर्ण सूत्र है। (२८७) • जागरण ही जीवन का सूर्योदय है, प्रभात है। (२८९) अहिंसा सबसे बड़ा मंगल है, भव-बंधन से मुक्ति का मार्ग है। (२९०) • जहां व्यक्ति के जीवन का सही ढंग से निर्माण नहीं होगा, वहां समाज का निर्माण कैसे होगा? जहां व्यक्ति ही अस्वस्थ होगा, वहां समाज अस्वस्थ कैसे नहीं होगा ? (२९४) • राह के बिना चाह मात्र कल्पना है, सपना है। (२९५) • संयम सुख का मौलिक आधार है, शांति का वाचक है। (२९८) • आचारसंपन्न साधक ही साधु नाम को सार्थक करता है। (३००) • चरित्र जीवन का अभिन्न साथी है, जबकि उपासना उसमें प्रेरक है। जो उपासना व्यक्ति के लिए अपना चरित्र उज्ज्वल रखने की प्रेरणा न बने, उस उपासना का कोई महत्त्व नहीं है। (३०३) • जीवन की हर प्रवृत्ति में धर्म की पुट रखने की कला आ जाती है तो जीवन स्वतः निर्मित हो जाता है। (३०४) • हालांकि धर्म के मौलिक स्वरूप से कोई घृणा कर नहीं सकता, तथापि जहां वह संकीर्णता के साथ जुड़ जाता है, वैमनस्य फैलाता है, वहां वह घृणा का पात्र बन ही जाता है। (३०५) • जो धर्म युगीन समस्याओं का समाधान प्रस्तुत न कर सके, उसे जनता अस्वीकार कर दे तो कोई आश्चर्य नहीं। (३०६) जो धर्म अपनी प्रासंगिकता बनाए रखता है, वह जीवित धर्म है। उसे कभी कोई नकार नहीं सकता। (३०६) .३५२ - आगे की सुधि लेड Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org

Loading...

Page Navigation
1 ... 367 368 369 370