Book Title: Aage ki Sudhi Lei
Author(s): Tulsi Acharya
Publisher: Jain Vishva Bharati

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Page 367
________________ • जो स्वयं ही उत्पथ में हैं, वे दूसरों को सही पथ पर कैसे लाएंगे? जो स्वयं ही अंधकार में हैं, वे दूसरों को प्रकाश कैसे बांटेंगे? (२११) अच्छे व्यक्तियों को समर्थन देने का अर्थ है-अच्छाइयों को समर्थन देना। (२१५) • जहां अच्छे व्यक्ति आगे आएंगे, अच्छाइयां प्रतिष्ठित होंगी, वहां समाज और राष्ट्र का वातावरण भी स्वस्थ बनेगा। (२१५) अच्छा और बुरा बनना व्यक्ति के स्वयं के हाथ का खेल है। वह अच्छा बनना चाहे तो अच्छा बन सकता है और बुरा बनना चाहे तो बुरा भी बन सकता है। (२१५) संकल्प विवेक-चेतना झंकृत करने की प्रक्रिया है। (२१७) • अनावश्यक संग्रह व्यक्ति तभी करता है, जब वह अनावश्यक अपेक्षाएं पालता है। (२२१) संग्रह करनेवाला पैसों का नहीं, दुःखों का संग्रह करता है। (२२२) आकांक्षा ही संसार है और जिस-जिस सीमा तक व्यक्ति इससे छूटता जाता है, उस-उस सीमा तक उसका मोक्ष होता जाता है। यानी आकांक्षा से मुक्ति ही मोक्ष है। (२२७) जब तक मूर्छा नहीं टूटती है, तब तक धन के बिना भी व्यक्ति परिग्रही बन जाता है। (२३३) सच्चरित्र, नैतिक और सदाचारी बनने में जो आत्मतोष और आत्मिक आह्लाद मिलता है, उसकी संसार के किसी पदार्थ से तुलना नहीं की जा सकती। (२३६) • यदि वर्तमान शुद्ध और स्वस्थ है तो भविष्य को सुखमय बनाने की चिंता करना बेमानी है। (२५०) • सच्चा धार्मिक वह है, जिसका जीवन पवित्र है, जो अपने मन में सहज शांति और तोष का अनुभव करता है। (२५५) । धन, इज्जत, जमीन, जायदाद आदि की संपन्नता धार्मिक व्यक्ति की पहचान नहीं है। धार्मिक की पहचान है-आत्मतोष। (२५५) • धर्म है तो वह जीवन-व्यवहार में आए। वह धन की तरह छिपाकर रखने की चीज नहीं है। (२५६) •३५० - आगे की सुधि लेइ Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org

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