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जीव का बचना अहिंसा नहीं है। वह तो अहिंसा का परिणाम है। अहिंसा है-अपनी आत्मा को दुष्प्रवृत्तियों से बचाना, समस्त जीवजगत के प्रति संयमित होना। (१०६) यद्यपि मैं सभी क्षेत्रों में नारी और पुरुष की बराबरी की बात नहीं करता, तथापि यह आवश्यक मानता हूं कि नारी को विकास का पूरा अवसर और अधिकार मिले, उसकी विशेषताओं का सही-सही
मूल्यांकन हो और उसके सम्मान की रक्षा की जाए। (११२) • यदि व्यक्ति स्वयं से शुभ शुरुआत करने की मानसिकता बना लेता है
तो कठिन-से-कठिन कार्य भी आसान हो जाता है। कोई मंजिल उससे दूर नहीं रहती। (११५) अध्यात्म-विकास का पहला सूत्र है-स्वयं सत्य खोजना। (११८) । • हालांकि धन जीवन चलाने के लिए आवश्यक है, तथापि उसके साथ
जब आत्म-नियंत्रण का अभाव रहता है तो वही दुःख और अशांति का
कारण बन जाता है। (११९) • वही उपासना धर्म है, जो हमारे जीवन की पवित्रता में हेतुभूत बनती
है, उसका साधन बनती है। जिस उपासना का जीवन की पवित्रता से कोई संबंध नहीं रहता, उसकी हमारे लिए भी कोई उपादेयता नहीं
है। (१२०) • परिग्रह की सुरक्षा अहिंसा से कभी हो नहीं सकती। (१२३) • आसक्ति परिग्रह है और परिग्रह की सुरक्षा हिंसा है। (१२३) • साधु को पैसा देना पाप है और साधुओं द्वारा पैसे का संग्रह करना
महापाप है। (१२६) • धार्मिक व्यक्ति को यह समझकर आसक्ति में कमी करनी चाहिए कि
अपने कर्मों का भोक्ता मैं स्वयं हूं, बुराई का फल मुझे ही भोगना पड़ेगा, फिर मैं आसक्त क्यों बनूं। (१२७) • सही मार्ग पकड़े बिना मंजिल कैसे मिल सकती है? शांति का मार्ग
पकड़े बिना उसकी प्राप्ति कैसे हो सकेगी? (१२७) • पता नहीं कि किन व्यक्तियों की करतूतों ने अहिंसा को कायर और
कमजोर व्यक्तियों को हथियार बना दिया। (१३२) • जो व्यक्ति स्वयं भयभीत रहता है, वह हिंसक है। इसी प्रकार जो औरों
प्रेरक वचन
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