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मिथ्यात्व सबसे बड़ा पाप है
बहुत-से व्यक्ति कहते हैं कि आज के युग में सत्य पर चलना मुमकिन नहीं हैं। ऐसे व्यक्तियों के लिए मैं कहता हूं कि उनका आस्तिक होना भी नामुमकिन है। युग का बहाना लेकर असत्य का पोषण/समर्थन करना मिथ्यात्व है। मैं मानता हूं, इस युग में सत्य पर चलना कठिन तो जरूर है, पर असंभव नहीं है। वे व्यक्ति घोर नास्तिक हैं, जो सत्याचरण को असंभव मान बैठे हैं।
शिष्य ने भगवान महावीर से पूछा कि पाप कितने हैं। इसके उत्तर में भगवान ने अठारह नाम गिनाए। वे हैं-१. प्राणातिपात २. मृषावाद ३. अदत्तादान ४. मैथुन ५. परिग्रह ६. क्रोध ७. मान ८. माया ९. लोभ १०. राग ११. द्वेष १२. कलह १३. अभ्याख्यान १४. पैशुन्य १५. परपरिवाद १६. रति-अरति १७. माया-मृषा १८. मिथ्यादर्शनशल्य)
भगवान ने कहा-'इन अठारह पापों में से सतरह पाप एक तरफ हैं और मिथ्यादर्शनशल्य पाप एक तरफ है।'
यह मिथ्यात्व का पाप बड़ा पाप है। एक शराबी शराब पीता है, पर वह पीने को बुरा मानता है। तत्त्व की भाषा में वह व्यक्ति पापी तो है, पर उससे भी बड़ा पापी वह है, जो स्वयं शराब पीता तो नहीं है, लेकिन कहता है कि शराब पीना कोई बुराई नहीं है। वह तर्क देता है कि यदि शराब बुरी है तो सरकार इसका करोड़ों का ठेका क्यों देती है।.."चूंकि उस व्यक्ति का दृष्टिकोण ही गलत है, इसलिए बुराई को प्रोत्साहन देता है, हजारों लोगों को बुराई में प्रविष्ट कराता है। इस दृष्टि से उसका पाप शराब पीने से भी ज्यादा बड़ा हो जाता है। सम्यक दृष्टिकोण का मूल्य
बंधुओ! आप बुराई को बुराई समझें। समझ सही होने के बाद आज नहीं तो कल, बुराई छूटकर रहेगी। अभी मनफूलजी ने कहा कि मैं अणुव्रत को अच्छा मानता हूं, इसलिए आज नहीं तो कल, मुझे अणुव्रती बनना होगा। मैं भी यही कहता हूं कि आप अपना दृष्टिकोण सम्यक बनाएं। शास्त्रों में हमने पढ़ा है कि जो व्यक्ति प्रतिदिन कत्ल करते थे, पांच-सात कत्ल किए बिना जिन्हें खाना और सोना अच्छा नहीं लगता था, उनका भी भविष्य में सुधार हो गया, क्योंकि उनका दृष्टिकोण सम्यक था, लेकिन उनका सुधार कैसे हो, जो पाप करते हैं आस्तिक : नास्तिक
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