Book Title: Aage ki Sudhi Lei
Author(s): Tulsi Acharya
Publisher: Jain Vishva Bharati

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Page 321
________________ जीवन में वपन हो सकेगा, जीवन-निर्माण की दिशा उद्घाटित हो सकेगी। फिर यह आम शिकायत शायद सुनने को नहीं मिलेगी कि आज की नई पीढ़ी संस्कार- विहीन हो रही है। उपासक दीक्षा : एक प्रयोग नई पीढ़ी में सुसंस्कारों के जागरण की दृष्टि से मेरे दिमाग में एक परिकल्पना है। बौद्ध धर्म प्रत्येक व्यक्ति को सावधिक संन्यासी बनने की बात कहता है, क्योंकि इससे धर्म के संस्कार मिलते हैं। हालांकि जैन-धर्म में ऐसी कोई परंपरा नहीं है, तथापि मुझे लगता है कि यह एक उपयोगी बात है। मैं चाहता हूं, इस दिशा में हमें भी चिंतन करना चाहिए। प्रारंभिक रूप में परिवार - परिवार से एक-एक व्यक्ति एक वर्ष के लिए उपासक की दीक्षा स्वीकार करे। इस अवधि में उसका घर से लगभग संबंध विच्छिन्नसा रहे। पूरे साल भर उसका प्रशिक्षण चले। इस प्रशिक्षण - काल में उसे कर्म के साथ धर्म को जोड़ने की कला सिखाई जाए। मैं मानता हूं, जीवन की हर प्रवृत्ति में धर्म की पुट रखने की कला आ जाती है तो जीवन स्वतः निर्मित हो जाता है। मैंने इस संदर्भ में संकेत दिया है, पर इसकी क्रियान्विति समाज के लोगों की तैयारी पर निर्भर है। मैं चाहता हूं, इस बिंदु पर सभी गंभीरता से चिंतन करें। स्वस्थ समाज के निर्माण की दृष्टि से यह प्रवृत्ति अत्यंत उपयोगी सिद्ध हो सकती है। सरदारशहर २५ मई १९६६ • ३०४ Jain Education International For Private & Personal Use Only आगे की सुधि इ www.jainelibrary.org

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