Book Title: Aage ki Sudhi Lei
Author(s): Tulsi Acharya
Publisher: Jain Vishva Bharati
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और दुखी नहीं बना सकता। वह मात्र उसका निमित्त बन सकता है। सुखी और दुखी होने में उपादान कारण व्यक्ति स्वयं होता है। पाप किसे होता है
पिछले दिनों हमने श्रीगंगानगर जिले की मंडियों की यात्रा की। वहां धूम्रपान-निरोध के लिए तीव्र प्रयत्न किया। हमारे इस अभियान को लक्ष्य करके एक व्यक्ति ने कहा-'आपके इस कार्यक्रम से हजारों दुकानदारों को नुकसान होता है। बताइए कि इसका पाप किसे होता है।' मैंने उसे समझाया-'हम तो जन-जीवन को धूम्रपान की बुराई से मुक्त करवाने के पवित्र उद्देश्य से कार्य करते हैं। दुकानदारों को नुकसान पहुंचाना हमारे उपदेश/कार्यक्रम का कोई उद्देश्य नहीं है। उनके प्रति हमारे मन में किंचित भी द्वेष की भावना नहीं है। जब हम समत्वबुद्धि से अपना कार्य करते हैं, तब पाप लगने का कोई प्रश्न ही पैदा नहीं होता। वे दुकानदार यदि दुखी होते हैं तो अपने गलत धंधे के कारण। उससे हमारा कोई संबंध नहीं है।' शराब और सरकारी नीति ___ मैं एक मंडी में गया। वहां के कुछ सात्त्विक वृत्तिवाले किसान मिलकर मेरे पास आए और बाले-'आचार्यजी! मिनिस्टर लोग हम सामान्य लोगों की बात तो सुनते नहीं हैं, पर आपकी बात सब सुनते हैं, क्योंकि आपका सब पर अच्छा प्रभाव है। कृपया हमारी ओर से आप उन तक दो बातें अवश्य पहुंचा दें। पहली बात है-शराब कानूनन बंद कर दी जाए। दूसरी बात है-जनता को हथियारों की सप्लाई न की जाए। आचार्यजी! इस एरिया के लोग शराब पीकर पागल हो जाते हैं और हथियारों के द्वारा बड़ी आसानी से कत्ल करते रहते हैं। इस कठिन परिस्थिति से आप ही हमें उबार सकते हैं।'
मैंने वहां की स्थिति का अध्ययन किया तो मुझे उनकी बात तथ्यपरक लगी। श्रीगंगानगर शहर में सरकार ने दो करोड़ रुपयों का शराब का ठेका दे रखा है। आस-पास की मंडियों में कहीं पांच लाख का, कहीं दस लाख का, कहीं बीस लाख का ठेका है। ठेका देने के बाद शराब बिके या न बिके, इसकी जिम्मेदारी सरकार की नहीं रहती। सारी जिम्मेदारी ठेकेदारों की रहती है। ठेकेदार शराब बेचने के लिए येन केन प्रकारेण उसके प्रति जनता में आकर्षण पैदा करते हैं, प्रलोभन देते हैं,
समता का दर्शन
.३०९.
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