Book Title: Aage ki Sudhi Lei
Author(s): Tulsi Acharya
Publisher: Jain Vishva Bharati

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Page 322
________________ ५२ : अणुव्रत : जाग्रत धर्म धर्म आकाश की तरह व्यापक है धर्म एक अखंड सत्य है। यह उतना ही व्यापक है, जितना आकाश। संप्रदाय धर्म के प्रचार-प्रसार के लिए उपयोगी होते हैं, पर वे धर्म को अपनी सीमा में नहीं समेट सकते। संप्रदायों को हम छोटे-बड़े घरों की तरह समझ सकते हैं। हर छोटे-बड़े घर में आकाश रहता है, पर कोई भी घर संपूर्ण आकाश नहीं घेर सकता। उसकी सीमा के बाहर भी निस्सीम आकाश रहता है, पर लोगों ने अपनी संकीर्ण वृत्ति के कारण धर्म-जैसे व्यापक तत्त्व को संप्रदायों की सीमित चारदीवारी में कैद करने की कोशिश की है। इसी प्रकार धर्म को वर्गविशेष में बांधने का प्रयास हुआ है। यह भी लोगों की संकीर्ण मनोवृत्ति का परिणाम है। हालांकि किसी वर्ग में धर्म रह सकता है, तथापि यह बहुत स्पष्ट है कि वर्ग और धर्म का परस्पर कोई संबंध नहीं है। वर्गविशेष में उसे बांधने का प्रयास करना उसकी उपयोगिता कम करना है। यद्यपि ऐसे प्रयत्नों से धर्म की व्यापकता में कहीं कोई अंतर नहीं आया, तथापि धर्म से जो लाभ लोगों को मिलना चाहिए था, वह नहीं मिल सका। यही कारण है कि धर्म शब्द का अपकर्ष हो गया है। लोगों में उसके प्रति जो आदर की भावना होनी चाहिए, वह नहीं है। कुछ लोग तो उससे घृणा तक करते हैं। हालांकि धर्म के मौलिक स्वरूप से कोई घृणा कर नहीं सकता, तथापि जहां वह संकीर्णता के साथ जुड़ जाता है, वैमनस्य फैलाता है, वहां वह घृणा का पात्र बन ही जाता है। अणुव्रत ने धर्म को संप्रदाय, वर्ग आदि की संकीर्ण सीमाओं से बाहर निकालकर उसे पुनः व्यापक स्वरूप प्रदान करने का गौरव प्राप्त किया है। उसके प्रयत्न से धर्म के प्रति लोगों के मन में जमी गलत अवधारणा समाप्त हो रही है, अणुव्रत : जाग्रत धर्म -३०५. Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org

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