Book Title: Aage ki Sudhi Lei
Author(s): Tulsi Acharya
Publisher: Jain Vishva Bharati

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Page 320
________________ कल एक युवक ने मुझसे प्रश्न किया कि उपासना और चरित्र-धर्म के इन दो अंगों में से किसे महत्त्व देना चाहिए। जीवन-विकास की दृष्टि से मैं उपासना और चरित्र दोनों को ही महत्त्वपूर्ण और आवश्यक मानता हूं, पर इस संदर्भ में यह बात अवश्य समझ लेने की है कि चरित्र जीवन का अभिन्न साथी है, जबकि उपासना उसमें प्रेरक है। जो उपासना व्यक्ति के लिए अपना चरित्र उज्ज्वल रखने की प्रेरणा न बने, उस उपासना का कोई महत्त्व नहीं है। दूसरे शब्दों में वह धर्म का अंग नहीं है, धर्म नहीं है। मैं जाग्रत उपासना को धर्म का अंग मानता हूं। इस दृष्टि से स्वाध्याय, ध्यान, सत्संग आदि बातें उपासना के अंतर्गत आती हैं। इन्हें जीवन के साथ जोड़ने से जीवन निर्मित होता है, पवित्रता सधती है, चरित्र निर्मल बनता है। ___ मैं देख रहा हूं, आजकल स्वाध्याय, ध्यान आदि प्रवृत्तियों के प्रति लोगों के मन में अभिरुचि बहुत कम है। सत्संग का भी अभाव है। इसका परिणाम हमारे सामने है। समाज के लोगों का जीवन-निर्माण सही ढंग से नहीं हो रहा है। यदि ये तत्त्व जीवन का एक हिस्सा होते तो यह स्थिति पैदा नहीं होती। स्वाध्याय, ध्यान आदि की बात मैं एक बार छोड़ता हूं, एक सत्संग की बात ही लेता हूं। साधु-संतों की संगत व्यक्ति का जीवन रूपांतरित करने की दृष्टि से बहुत ही महत्त्वपूर्ण तत्त्व है। उनके साधनामय जीवन का व्यक्ति के हृदय पर वह चामत्कारिक प्रभाव होता है कि सामान्य व्यक्ति उसकी कल्पना भी नहीं कर सकता। श्रीगंगानगर जिले के यात्रा के ऐसे अनेक प्रसंग मेरे सामने हैं, जो इस बात को सत्यापित करते हैं। एक व्यक्ति है-सरदार बलसिंह। उसने शराब-शराब में तीन लाख रुपए बर्बाद कर दिए। एक दूसरे सरदार ने इसी शराब में पचीस मुरब्बा (पचीस बीघा का एक मुरब्बा) जमीन पूरी कर दी। किंतु सत्संग का उनके जीवन पर जादुई असर हुआ और उन्होंने इस बुराई से मुक्ति पा ली। एक तरफ सत्संग से जीवन का रूपांतरण और दूसरी तरफ उसके प्रति उपेक्षा! यह उपेक्षा कहां तक उचित है, आप स्वयं समझ सकते हैं। सत्संग के प्रति यह उपेक्षा की बात केवल सरदारशहर के लिए नहीं है, अपितु लगभग पूरे थली संभाग की यही स्थिति है। इस उदासीनता को तोड़ना अत्यंत आवश्यक है। यह उदासीनता टूटेगी, तभी सुसंस्कारों का स्वस्थ समाजरचना .३०३. Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org

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