________________
अपने-अपने मुर्गे की गर्दन काटकर ले आओ।' ___ गुरु का आदेश पालने के लिए राजपुत्र वसु अपने महल में गया और एक कक्ष का दरवाजा बंद करके उसने मुर्गे की गर्दन तोड़ दी। गुरुपुत्र पर्वत अपने घर गया और उसने भी छत पर जाकर मुर्गे की गर्दन काट ली।
नारद मुर्गा हाथ में लेकर जंगल की ओर चल पड़ा। उसे गुरु के इस आदेश पर आश्चर्य हो रहा था। बावजूद इसके, आदेश तो आदेश ही था, इसलिए वह चलता रहा। मनुष्य की दुनिया पार हो गई, पर पशु इधरउधर घूम रहे थे। पशुओं का संसार भी पीछे छूट गया लेकिन पक्षी अपने नीड़ों से नीचे देख रहे थे। आखिर वह एक अंधेरी गुफा में गया, पर जैसे ही उसने मुर्गे की गर्दन पर हाथ रखा कि उसे याद आया कि गुरु के आदेश का भंग हो रहा है। यहां और कोई नहीं तो क्या हुआ, मेरी आंखें तो देख ही रही हैं। उसने झट अपनी आंखों पर पट्टी बांधी, लेकिन फिर उसे ख्याल आया, पट्टी बांधना भी बेकार है, क्योंकि भगवान तो सब जगह देखते हैं। मैं कहीं क्यों न चला जाऊं, फिर भी ऐसा कोई स्थान नहीं मिलेगा, जहां भगवान न देखते हों।
सांय तीनों शिष्य गुरुचरणों में पहुंचे। गुरु ने आदेश की पालना के बारे में पूछा। पूछने के साथ ही वसु और पर्वत ने गर्दनकटे मुर्गे गुरु के समक्ष रख दिए, पर नारद चुपचाप बैठा रहा। गुरु ने उससे भी मुर्गा दिखलाने के लिए कहा तो उसने बिना गर्दनकटा मुर्गा सामने रख दिया। गुरु ने आदेश की पालना न करने का कारण पूछा तो उसने सारी बात बता दी। यद्यपि गुरु ने शिष्यों से कुछ भी नहीं कहा, तथापि वे खुद समझ गए कि स्वर्गगामी कौन है और नरकगामी कौन हैं।
आप स्वयं निर्णय करें
हमारी इस परिषद में इतने व्यक्ति बैठे हुए हैं। इनमें से आस्तिक कौन-कौन हैं, इस बात का निर्णय मैं आप पर ही छोड़ देता हूं। जिस व्यक्ति के मन में पाप के प्रति ग्लानि है, पाप हो जाने पर जिसकी अंतर आत्मा में टीस पैदा होती है और जो अनुभव करता है कि मैंने कुछ खो दिया है, वह आस्तिक है। जहां पाप के प्रति ग्लानि नहीं है, आत्मा में टीस नहीं है, खोने का अनुभव नहीं है, वहां नास्तिकता प्रकट होती है।
• २८२
- आगे की सुधि लेइ
Jain Education International
For Private & Personal Use Only
www.jainelibrary.org