________________
अणुव्रत कहता है......
इस चिंतन के आधार पर मैंने जनता का मनोवैज्ञानिक दृष्टि से अध्ययन किया और एक नया मार्ग निकाला। यह नया मार्ग अणुव्रत के नाम से जन-जन के आकर्षण का केंद्र बन रहा है। अणुव्रत व्यक्ति से नहीं पूछता कि वह मंदिर, मस्जिद या अन्य किसी धर्मस्थान में जाता है या नहीं, भगवान का जाप करता है या नहीं, साधु-संतों की उपासना साधता है या नहीं, दान करता है या नहीं। इससे भी आगे अणुव्रत तो किसी को यह भी नहीं पूछता कि वह ईश्वर में विश्वास करता है या नहीं. स्वर्ग. नरक, पूर्वजन्म, पुनर्जन्म आदि में उसकी आस्था है या नहीं। अणुव्रत तो एक ही बात कहता है कि व्यक्ति जहां है, जिस धंधे में है, जिस-किसी धर्म-संप्रदाय से संबद्ध है अथवा नहीं भी है, उस स्थिति में रहता हुआ अपने आचार और विचार से पवित्र रहे; अपनी हर प्रवृत्ति पर संयम और विवेक का नियंत्रण रखे; अनैतिक, अप्रामाणिक और दुराचारी न बने। एक वाक्य में कहूं तो अणुव्रत कहता है कि व्यक्ति अच्छा इंसान बनकर जिए। यदि व्यक्ति इतना कर लेता है तो मानना चाहिए कि धर्म बिना बुलाए ही उसके जीवन में आ गया है। मैं आपसे ही पूछता हूं कि धर्म क्या है। मनुष्य को अच्छा मुनष्य बनाने की प्रक्रिया का नाम ही तो धर्म है। जीवन को पवित्र बनाने का मार्ग ही तो धर्म है। अणुव्रत का यही फलित है। इसलिए अणुव्रत को अपनाने से व्यक्ति सहज रूप से धार्मिक बन जाता है। आप सब भी अणुव्रत को समझें। उसका दर्शन हृदयंगम करें और उसके छोटे-छोटे संकल्प अंगीकार करें। निश्चय ही आप अच्छे इंसान बन सकेंगे। पवित्रता की आभा से आपका जीवन प्रभासित हो उठेगा।
सूरतगढ़ ८ मई १९६६
.२८०
-
आगे की सुधि लेइ
Jain Education International
For Private & Personal Use Only
www.jainelibrary.org