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अस्तु, यदि धर्म को व्यवहार में लाने का प्रयास किया जाए तो बहुत बड़ा काम हो सकता है । आज लोग विश्व - सरकार बनाने की बात सोच रहे हैं। यह काम हो सकेगा या नहीं, कहा नहीं जा सकता, पर विश्व-धर्म हो सकता है। आचार को प्रधान मानकर मानव-धर्म की बात करें तो इस कार्य में सफलता मिल सकती है। अणुव्रत आचारप्रधान धर्म है, इसलिए वह मानव-धर्म के रूप में प्रतिष्ठित होता चला जा रहा है। सभी जाति, वर्ग, संप्रदाय के लोग इसे समान रूप से मान्य कर रहे हैं। मैं मानता हूं, धर्म का आचार- पक्ष ही उसका मूल है। अहमेव मयोपास्यः की बात मैंने प्रारंभ में कही थी। उसका भावार्थ धर्म की आराधना ही है । इस आराधना से हम अपने आत्म स्वरूप से परिचित हो सकेंगे, परमात्म स्वरूप से परिचित हो सकेंगे। जिस क्षण हमें यह उपलब्धि होगी, वह हमारे जीवन का सर्वाधिक मूल्यवान क्षण होगा ।
सिरसा
२६ फरवरी १९६६
स्वयं की उपासना
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