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भगवान महावीर ने धर्म की सम्यक रूप में आराधना करके अपना आत्मस्वरूप प्राप्त किया। वे परमात्मपद को प्राप्त हुए। हम सब भी उनके पदचिह्नों का अनुसरण करें। ऐसा करके ही हम महावीर को मना सकते हैं।
श्रीगंगानगर ३ अप्रैल १९६६
कैसे मनाएं महावीर को
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