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हुए कहा-'देखो, जब तुम ये सब बुराइयां छोड़ने की स्थिति में नहीं हो, तब मैं तुम्हें छोड़ने के लिए नहीं कहता, पर जब तुमने मुझे गुरु रूप में स्वीकार कर लिया है, तब कम-से-कम मेरे सामने ये बुराइयां मत करना । ' युवक शिष्य ने गुरु का यह निर्देश सहर्ष स्वीकार कर लिया।
दिन का समय बिना किसी खास कठिनाई के निकल गया, पर ज्यों ही सांझ ढली और युवा संन्यासी के शराब पीने का समय हुआ, वह बेचैन हो उठा। तत्काल शराब की बोतल उसने हाथ में उठाई, पर ज्योंही वह शराब पीने के लिए उद्यत हुआ कि गुरु की तस्वीर उसकी आंखों के सामने उतर आई। परिणामतः अपने संकल्प में दृढ़ वह युवा संन्यासी शराब नहीं पी सका। उसने बोतल वापस रख दी। इसी प्रकार जुआ खेलना, वेश्या के पास जाना आदि बुराइयों के लिए उसके मन में ज्वार उठा और वह उनमें प्रवृत्त के लिए उद्यत हो गया, पर हर बार गुरु की मोहिनी मूरत उसके सामने आ गई और वह वहीं का वहीं रह गया। आगे नहीं बढ़ सका । परिणाम यह आया कि पांच-दस दिनों में ही उसकी सारी बुराइयां स्वतः समाप्त हो गईं।
एक दिन संन्यासी ने अवसर देखकर शिष्य से पूछा- 'क्यों बुराइयों का क्या हाल है?' छूटते ही युवा संन्यासी बोला- 'कैसी बुराइयां ! अब मुझे उनकी याद ही नहीं आती । गुरुदेव ! सचमुच आप बहुत महान हैं ! आपके एक छोटे से मंत्र ने मुझे उबार लिया। यदि आपका सुयोग नहीं मिलता और आपकी मुझ पर कृपा नहीं होती तो बुराइयों से पिंड छूटना कभी संभव नहीं था । मैं जन्म-जन्मांतर तक भी आपके उपकार से उऋण नहीं हो सकता । ' यों भावविभोर होता हुआ वह गुरु के चरणों में प्रणत हो गया।
संकल्प और गुरुसाक्षी
बंधुओ ! जैसाकि मैंने कहा, साधु-संत जन-जन की विवेक चेतना जगाने का प्रयत्न करते हैं। संकल्प विवेक चेतना झंकृत करने की प्रक्रिया है । इसे झंकृत करके व्यक्ति अपना जीवन स्वस्थ बना सकता है। इस संदर्भ में एक बात और कह देना चाहता हूं। यों तो व्यक्ति संकल्प स्वयं भी कर सकता है, पर साधु-संतों के समक्ष संकल्प स्वीकार करने का अपना एक विशेष मूल्य है। संतों की साक्षी संकल्प को मजबूती से निभाने में बहुत योगभूत बनती है। जहां कहीं मन में थोड़ी-बहुत दुर्बलता आती है,
जाग्रत जीवन
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