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उसे धोने की बात स्वतः कृतार्थ हो जाएगी, पर सावधानी रखने के बावजूद जब-तब प्रमाद होने की संभावना से इनकार नहीं किया जा सकता; और जहां प्रमाद है, वहां बंधन अवश्यंभावी है। यह बंधन रूपी मैल धोने की दृष्टि से साधु-संतों की संगत बहुत उपयोगी है। उनके उपदेश-श्रवण से मन को अनुशासित करने की प्रेरणा जागती है, तप की दिशा में व्यक्ति की गति होती है। इससे पूर्वसंचित मैल छूटने लगता है और आत्मा क्रमशः स्वच्छ/पवित्र बनने लगती है।
आपके नगर में सत्संग की यह जो गंगा बह रही है, उसमें नहाकर आप अपनी आत्मा को निर्मल बनाएं। अणुव्रत संयम और तप की साधना का व्यावहारिक प्रारूप है। गृहस्थ की भूमिका में अपने आवश्यक कर्तव्य निभाता हुआ भी व्यक्ति इसकी साधना कर सकता है। आप भी अणुव्रत के छोटे-छोटे संकल्प स्वीकार करें। निश्चय ही यह स्वीकरण आपकी आत्मा को निर्मल बनाएगा। आप अपने जीवन में सुख और शांति का अनुभव कर सकेंगे।
रायसिंहनगर ३० अप्रैल १९६६
अहिंसा और अनासक्ति
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