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प्रेम/मैत्री की बात सिखाता है। धर्म के नाम पर लड़ाई करना उस पर कलंक लगाने के समान है। धर्म आकाश की तरह व्यापक है
कुछ लोग अपनी संकीर्ण मनोवृत्ति के कारण धर्म को भी संकीर्ण बना देते हैं, पर धर्म आकाश की तरह व्यापक तत्त्व है। उसमें जाति, वर्ण, वर्ग आदि का कोई भेद नहीं है। सभी को उससे समान रूप से लाभान्वित होने का अधिकार है। कोई संकीर्ण वृत्तिवाला व्यक्ति चूने-पत्थर के मंदिर में किसी को घुसने से रोक सकता है, पर मन-मंदिर में उपासना करने से कोई किसी को नहीं रोक सकता। नारी और धर्माराधना
कई लोग मानते हैं कि औरत को धर्म करने का अधिकार नहीं है, क्योंकि वह तो लुगाई है। लुगाई लुकाई यानी छिपाकर रखने की चीज है। इसलिए औरत को विकास का अवसर भी नहीं मिलता। एक भाई ने मुझसे कहा-'आचार्यजी! धर्म तो ठीक ही है, पर औरत को साध्वी बनने का अधिकार नहीं मिलना चाहिए।'
मैं पूछना चाहता हूं कि जब एक स्त्री राष्ट्र की प्रधानमंत्री बन सकती है, तब वह अध्यात्म के क्षेत्र में आगे क्यों नहीं आ सकती; एक लड़का विरक्त हो सकता है तो एक लड़की क्यों नहीं हो सकती। हां, प्रलोभन देकर, फुसलाकर दीक्षा देना पाप है। ऐसी दीक्षा को मैं भी कतई उचित नहीं मानता, पर जो लड़की या महिला अपनी विरक्ति से साधना का पथ स्वीकार करती है, उसे सहयोग देना हमारा धर्म है। वस्तुतः धर्म-क्षेत्र में स्त्री-पुरुष, निर्धन-धनवान, हरिजन-महाजन... की कोई भेदरेखा नहीं है। उसका द्वार सबके लिए समान रूप से खुला है। कोई व्यक्ति, भले वह किसी जाति, वर्ण, वर्ग, संप्रदाय से संबद्ध क्यों न हो, उसे स्वीकार कर सकता है, और मैं तो यहां तक कहता हूं कि जो धर्म सार्वजनीन नहीं है, वह वास्तव में धर्म है ही नहीं। भगवान महावीर ने सार्वजनीन धर्म का मार्ग हमें दिखाया है। अणुव्रत उसी का प्रतिनिधित्व करता है। यही कारण है कि सभी जाति, वर्ण, वर्ग, संप्रदाय के लोग उसे समान रूप से अपना रहे हैं। मेरा दृढ़ विश्वास है कि धर्म का सार्वजनीन रूप ही सुख और शांति का मार्ग प्रशस्त कर सकता है। आप भी उस सार्वजनीन धर्म को जीवन का अभिन्न अंग बनाएं। आपका भाग्य-सितारा चमक उठेगा। रायसिंहनगर, २९ अप्रैल १९६६
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