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अशांति-ये दोनों हो नहीं सकते। विवेक-जागरण : क्यों : कैसे
आप कहेंगे, लक्ष्य तो सही और स्थिर ही है। मनुष्य सदा से ही सुख और शांति का लक्ष्य बनाकर जीता है। ठीक है, लक्ष्य सही और स्थिर है। अब उसे वहां तक पहुंचने के लिए गति करनी होगी। गति का यहां अर्थ है-जागना, पर इस जागने का अर्थ आंखों का खुलना नहीं है। जागने का अर्थ है-विवेक-जागरण। विवेक वह तत्त्व है, जो अच्छाई और बुराई में भेदरेखा खींचता है। जिस व्यक्ति में अच्छाई और बुराई का विवेक नहीं जागेगा, वह कैसे तो अच्छाई स्वीकार करेगा और कैसे बुराई छोड़ेगा? इसी लिए जैन-तीर्थंकरों ने विवेक-जागरण पर बहुत बल दिया है। सजगता अपेक्षित है
आप पूछेगे कि यह विवेक-जागरण कैसे होता है। यह होता है गुरु के सान्निध्य में, गुरु की उपासना से। पर इस संदर्भ में एक बात अवश्य समझने-जैसी है। यह प्राप्त उसे ही होता है, जो क्षण-क्षण सजग रहता है। गुरु-सान्निध्य में भी जो प्रमाद में रहता है, उसे रत्न प्राप्त नहीं हो सकता। मैं देखता हूं, हजारों व्यक्ति धर्मस्थानों में आते हैं, उपदेश सुनते हैं, पर जाग्रति सब नहीं पाते। क्यों ? यह इसलिए कि थोड़ी-सी असावधानी से जाग्रति के बाधक तत्त्व व्यक्ति पर हावी हो जाते हैं। . प्रसंग सूफी संत हाफिज का
सूफी संत हाफिज अपने गुरु के सान्निध्य में आश्रम में साधना करता था। और भी अनेक शिष्य साधनालीन थे। एक दिन गुरु ने आदेश दिया-'शिष्यो! सब ध्यानमग्न हो जाओ और तब तक इस स्थिति में रहो, जब तक मैं आवाज न दूं।'
गुरु का आदेश पाकर सब शिष्य ध्यानमग्न हो गए। अर्ध रात्रि के बाद गुरु ने आवाज दी-'हाफिज! इधर आओ।' हाफिज तत्काल गुरु के पास पहुंचा। गुरु ने उसे ध्यान की विशेष विधि बताई। वहां से लौटकर हाफिज पुनः ध्यानलीन हो गया। ___आधा घंटा बाद गुरु ने दूसरे शिष्य को नाम लेकर पुकारा, लेकिन इस बार भी हाफिज ने ही सान्निध्य साधा। सुबह तक गुरु ने दस-बारह बार दूसरे-दूसरे शिष्यों को बुलाया, लेकिन दूसरा कोई शिष्य नहीं आया।
जाग्रति : क्यों : कैसे
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