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आप भी इस सचाई को समझने का प्रयास करें। मेरा विश्वास है, यदि आप एक बार इस सचाई का अनुभव कर लेंगे तो आपको दीक्षा स्वीकार करना कांटों का ताज पहनना नहीं लगेगा। हालांकि इस सचाई से परिचित होने के बाद भी आप सब दीक्षा स्वीकार कर लेंगे, ऐसा सोचना अत्याशा करना होगा। मैं ऐसी अत्याशा नहीं करता, पर इतनी प्रेरणा अवश्य देता हूं कि आप एक सीमा तक तो त्याग और संयम का पथ अपनाएं। महाव्रती नहीं बन सकते तो क्या, अणुव्रती तो बन ही सकते हैं। अणुव्रती बनना त्याग और संयम की दिशा में ही प्रयाण है, एक सीमा तक त्याग और संयम की ही साधना है। त्याग, संयम की यह आंशिक साधना भी आपके जीवन के लिए एक वरदान सिद्ध होगी। गृहस्थ की भूमिका में रहते हुए भी आप सुख और शांति का जीवन जी सकेंगे।
अबोहर १० अप्रैल १९६६
२०६
आगे की सुधि लेइ
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