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ही अध्यात्म की साधना कर सकता है, पर यह ससीम संयम की आराधना, आंशिक अध्यात्म-साधना भी उसके सुख और शांति का आधार बनती है। इसलिए प्रत्येक भाई और बहिन को यथाशक्य संयम को जीवन में स्थान देना चाहिए, अध्यात्म को जीना चाहिए। वह दिन सचमुच व्यक्ति के लिए अत्यंत सौभाग्य का दिन होता है, जिस दिन वह पूर्ण संयमी बनता है, साधु-जीवन अंगीकार करता है, अध्यात्म-साधना के लिए सर्वात्मना समर्पित हो जाता है।
अबोहर ८ अप्रैल १९६६
सुख और शांति का मार्ग
२०१.
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