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घर में खड़े व्यक्ति स्तब्ध बने हुए हैं।
राम के निर्देश पर लक्ष्मण ने पंडित को आकाश में न छोड़कर जमीन पर ही छोड़ा। लोगों न सारी स्थिति समझकर ब्राह्मणी की मुक्त कंठों से प्रशंसा की तथा ब्राह्मण को बुरा-भला कहा। परिचय पूछने पर राम, लक्ष्मण और सीता नाम सुनकर सब चकित रह गए और इस बात का अनुताप करने लगे कि हमारे घर से भी इन्होंने पानी मांगा था, पर हमने इन्हें सुना भी नहीं।
__ इस बीच ब्राह्मण भी शांत हो गया था। उसने आकर राम के पैर पकड़ लिए और अपने अपराध के लिए क्षमा मांगी। राम बोले-'मूर्ख! तुमने क्या किया, सोचो तो सही! यह अमानुषिक व्यवहार कहां तक शोभास्पद है? तुम्हें पत्नी क्या मिली है, देवी है! पर तुम्हारे भाग्य में सुख नहीं था। अब भविष्य में गुस्सा न करने का संकल्प ले लो।'
इस प्रसंग में ब्राह्मणी और ब्राह्मण क्रमशः तीसरी और चौथी श्रेणी में आते हैं। ब्राह्मणी बाहर और भीतर दोनों स्तरों पर अमृत थी तो ब्राह्मण दोनों स्तरों पर घातक जहर। क्रोध चांडाल है __बंधुओ ! यह क्रोध एक चांडाल है। आश्चर्य, लोग जाति के चांडाल से तो घृणा करते हैं, उसे अस्पृश्य मानते हैं और इस चांडाल को अपने घट में बसाए रहते हैं! और तो क्या, बहुत-से साधक और तपस्वी कहलानेवाले लोगों के मन में भी यह अपना आसन जमाए रहता है। दुर्वासा का गुस्सा कितना भयंकर था, यह बात कौन नहीं जानता? अतः क्षमा की साधना करनी चाहिए।
गुस्से को पी जाना क्षांति का सीधा-सा अर्थ है। गुस्सा करनेवाला व्यक्ति दूसरों का नुकसान करे या न भी करे, पर अपना अहित तो कर ही लेता है। कवि ने कहा है
क्रोधः कृपावल्लिदवानलोऽयं, देहस्थितो देहविनाशनाय।
कुछ व्यक्ति भोजन करते समय गुस्सा करते हैं। शास्त्रों में बताया गया है कि भोजन के समय गुस्सा करने से भोजन जहर हो जाता है। अतः साधक सलक्ष्य इससे अपना बचाव करता है।
अनासक्ति का दूसरा नाम है-मुक्ति। संसारी प्राणी को हर तरह का
साधना का प्रभाव
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