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से अक्रियावस्था आ जाती है तथा अंत में सिद्धि मिल जाती है। यह सत्संग का महान लाभ है। इसी लिए मैंने कहा, सत्संग जीवन-विकास का प्रारंभ भी है और उसकी चरम सीमा भी।
बंधुओ ! हमारे सामने ऐसे अनेक उदाहरण हैं, जो सत्संग का लाभ उजागर करते हैं। आप भी सत्संग का मूल्य और महत्त्व समझें। समझने का अर्थ यह नहीं कि आप केवल बुद्धि के स्तर पर उसे जान लें। बुद्धि के स्तर पर जानने के साथ-साथ ही उसे जीवन का एक हिस्सा भी बनाएं। निश्चय ही यह आपके जीवन में एक क्रांति लानेवाला साबित होगा। आत्म-विकास की यात्रा आपके लिए सहज हो जाएगी। मनुष्य-जीवन की सार्थकता का अनुभव करके आप धन्य हो जाएंगे।
श्रीगंगानगर २ अप्रैल १९६६ .
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- आगे की सुधि लेइ
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