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हाथी कैसा है
__ चौराहे पर खड़े हाथी के गले में बंधी घंटी की आवाज सुनकर छह अंधे व्यक्ति उसे देखने के लिए चल पड़े। हाथी के पास पहुंचकर छहों ने स्पर्श के द्वारा उसे देखा। छहों के निष्कर्ष अलग-अलग थे
• पहला व्यक्ति बोला-'हाथी खंभे जैसा है।' • दूसरा व्यक्ति बोला-'हाथी मूसल जैसा है।' • तीसरा व्यक्ति बोला-'हाथी बांस की लकड़ी जैसा है।' • चौथा व्यक्ति बोला-'हाथी छत जैसा है।' • पांचवां व्यक्ति बोला-'हाथी केले जैसा है।' • छठा व्यक्ति बोला-'हाथी छाज जैसा है।'
एक ही हाथी के बारे में छहों की विसंवादपूर्ण बातें उनके लिए बहुत बड़ी समस्या बन गई। हर व्यक्ति स्वयं को सच्चा तथा शेष पांचों को झूठा बताने लगा। प्रत्येक व्यक्ति को अपनी बात सही होने का आग्रह था। ऐसी अवस्था में झगड़े का निपटारा कैसे हो? स्थिति यहां तक बनी कि वे गाली-गलौज पर उतर आए।
उन व्यक्यिों को झगड़ते देखकर एक चक्षुष्मान व्यक्ति वहां आया। उसने पूछा-'तुम लोग लड़ते क्यों हो?' इस प्रश्न के उत्तर में सब अंधे एक साथ बोल पड़े-'मैं सच्चा हूं, पर मुझे ये असत्य साबित करना चाहते हैं।' उस चक्षुष्मान व्यक्ति ने उनकी बात का अध्ययन किया और ठंडे दिमाग से गहराई से सोचा। यह जरूरी भी था, क्योंकि न्याय वही कर सकता है, जो विवाद का कारण अच्छे ढंग से समझे और संतुलित दिमाग से उसके समाधान के बारे में चिंतन करे। उस व्यक्ति ने उन छहों अंधे व्यक्तियों से कहा–'तुम लोग एक बार मेरे साथ पुनः हाथी के पास चलो, फिर सारा विवाद स्वतः समाप्त हो जाएगा।'
हाथी के पास पहुंचकर उसने पहले व्यक्ति को हाथी का पैर पकड़ाया। दूसरे को दांत पकड़ाया। तीसरे को पूंछ पकड़ाई। इसी प्रकार चौथे को पीठ, पांचवें को सूंड और छठे को कान पकड़ाया। हर व्यक्ति ने कहा-'हां, हाथी यही है।'
झगड़े का मूल पकड़कर उस चक्षुष्मान ने उन्हें समझाया-'खंभा-सा जो है, वह हाथी का पैर है। मूसल-सा हाथी का दांत है। बांस-सी हाथी
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