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की पूंछ है। छत-सी हाथी की पीठ है। केले-सी हाथी की सूंड है और छाज-सा हाथी का कान है। तुम लोग जब तक एक-एक अवयव के आधार पर झगड़ते रहोगे, तब तक हाथी का सही स्वरूप नहीं जान सकोगे। केवल पैर हाथी नहीं हो सकता। केवल पीठ हाथी नहीं हो सकती। और इन अवयवों के बिना भी हाथी नहीं हो सकता। इसलिए तुम सब सच्चे हो, क्योंकि सबकी बातों में सत्य का अंश है।'
आत्मा के बारे में भी यही झगड़ा चल रहा है। आज हमारे सामने ऐसा कोई व्यक्ति नहीं है, जो आत्म-तत्त्व का संपूर्ण ज्ञाता या साक्षात द्रष्टा हो। अननुभूत तत्त्व के बारे में कोई कुछ बता नहीं सकता। इस स्थिति में 'मैं जानता हूं वही ठीक है' यह कथन झगड़े को जन्म देता है। नय : दुर्नय
जैन-दर्शन में दो शब्द हैं-नय और दुर्नय। किसी वस्तु का एकांगी ज्ञान करके यह कहना कि यही तत्त्व ठीक है, यह दुर्नय है। इसी ज्ञान के विषय में यह कहना कि मैंने सत्य को यहां तक पाया है, इससे आगे भी सत्य हो सकता है, लेकिन जब तक उसे समझ नहीं लेता, तब तक उसे स्वीकार नहीं कर सकता, नय है। अनाग्रही : आग्रही : दुराग्रही
आग्रही और अनाग्रही वृत्तियां ही व्यक्ति को सत्य से दूर और निकट ले जाकर छोड़ जाती हैं। उपाध्याय यशोविजयजी ने अध्यात्मोपनिषद् में कहा है
आग्रही बत! निनीषति युक्तिं, तत्र यत्र मतिरस्य निविष्टा। आग्रहेण रहितस्य तु युक्तिर्यत्र तत्र मतिरेति निवेशम्॥ - आग्रही व्यक्ति सत्याभास को सत्य मान लेता है तथा उसे ही
साबित करने की कोशिश करता है। अनाग्रही व्यक्ति जो कुछ जानता है, उसे कहता है, किंतु वह यदि सही नहीं होता है तो अपने चिंतन को मोड़ देता हुआ युक्तिसंगत विचार स्वीकार कर
लेता है। संसार में तीन प्रकार के व्यक्ति होते हैं-अनाग्रही, आग्रही और दुराग्रही। अनाग्रही वह होता है, जो अपनी बात युक्ति और तर्क से समझाए तथा दूसरे की बात युक्तिसंगत हो तो उसे स्वीकार भी करे। ऐसा व्यक्ति अच्छा माना जाता है, क्योंकि वह अपनी दृष्टि से सही बात पर
आत्मा और पुद्गल
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