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मद्यपान महाप्रमाद है
मद्यपान को महाप्रमाद माना गया है। मद्य, कषाय, विषय, निद्रा और विकथा-इन पांच प्रमादों में भी पहला स्थान मद्य का है। एक मद्यप प्रमादी होता है, क्योंकि वह अपना होश भूल जाता है और उस पर उन्माद हावी/प्रभावी हो जाता है। उन्माद की स्थिति आप जानते ही हैं। उसके वशीभूत होकर आदमी कौन-सा अकार्य नहीं कर लेता? अतः अपना हित चाहनेवाले किसी व्यक्ति को इसका सेवन नहीं करना चाहिए।
जैन, बौद्ध, वैष्णव, नामधारी सिक्ख, विश्नोई तथा कुछ मुसलमानों में भी मद्य का सर्वथा निषेध था, किंतु आज हम दृष्टि उठाकर देखते हैं तो पाते हैं कि इन समाजों में भी इस बुराई ने अपने पैर फैलाने शुरू कर दिए हैं। यह स्थिति चिंतनीय है। अतः इसका प्रतिकार करने के लिए हमें तीव्र प्रयास करना होगा।
हालांकि जड़-मूल से इस बुराई को उखाड़ना सहज बात नहीं है, तथापि इस दिशा में तीव्र प्रयास तो होना ही चाहिए। इससे बढ़ती हुई इस दुष्प्रवृत्ति पर अंकुश लग सकेगा तथा जो लोग इस बुराई से ग्रस्त हैं, उनकी संख्या भी धीरे-धीरे कम हो सकेगी।
इस संदर्भ में एक बात ध्यान देने योग्य है। आज का युग वैज्ञानिक युग है। इसमें हर तथ्य व्यवस्थित रूप से प्रस्तुत करना पड़ता है। आज उपदेश से जो काम नहीं हो सकता, वह युक्तिपूर्वक समझाने से होता है। यदि हम युग की नई पीढ़ी को इस बुराई से मुक्त रखना/करना चाहते हैं तो इस विषय से संबद्ध विविधमुखी अध्ययन प्रस्तुत करना होगा, स्वास्थ्यशास्त्रीय, मानसशास्त्रीय, शरीरशास्त्रीय और अध्यात्मशास्त्रीय अध्ययनों को प्रयोगात्मक रूप देना होगा। कुएं भांग पड़ी!
__ अभी प्रिंसिपलसाहब ने कहा कि शराब सभ्यता बन गई है, इसलिए हर वर्ग इससे प्रभावित हो रहा है, लेकिन मैं तो समझ नहीं पाता कि ऐसी दुर्गंधयुक्त चीज आदमी पीता कैसे है। कुछ दिनों पहले की बात है। मैं रात्रि में प्रवचन कर रहा था। प्रवचन में प्रसंगवश मैंने शराब के दुष्परिणामों की चर्चा की। प्रवचन के थोड़ी देर बाद मुझे बताया गया कि ठीक उसी समय शराब की बोतलों से भरे ट्रक में आग लग गई। बात यों बनी कि ट्रक-ड्राइवर बीड़ी पीता था। बीड़ी झाड़ने से
मद्यपान : एक घातक प्रवृत्ति
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