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कि पाने का लाभ क्या हुआ, यदि इसका सही मूल्यांकन नहीं किया। यदि आप इसका सही मूल्य आंकते तो इसे मार-काट और हत्याओं में पूरी नहीं करते। बेईमानी, असत्य और शोषण में नहीं गंवाते। महात्मा भले नहीं बन पाए, पर अपनी वृत्तियां राक्षसी नहीं बनाते। अतः सबसे पहली अपेक्षा है कि मनुष्य जीवन का यथार्थ मूल्यांकन हो। अप्पणा सच्चमेसेज्जा
अध्यात्म-विकास का पहला सूत्र है-स्वयं सत्य खोजना। आगमवाणी-अप्पणा सच्चमेसेज्जा हमें यही संदेश देती है। हालांकि हमारे ऋषि-मुनियों ने सत्य का बहुत संधान किया है, तथापि हमारे लिए स्वयं की खोज का ही ज्यादा महत्त्व है। समत्व-बुद्धि
अध्यात्म का दूसरा सूत्र है-समत्व-बुद्धि। सब प्राणी समान हैं। आत्म-अस्तित्व की दृष्टि से प्राणी-प्राणी में कोई अंतर नहीं है। सबको अपने सुख-दुःख का ख्याल है। सभी को सुख काम्य है। इसलिए सबके साथ मैत्री का व्यवहार होना चाहिए। सबके साथ सौहार्द बना रहना चाहिए। यह तत्त्व आगमों, पिटकों, वेदों, उपनिषदों, पुराणों, गुरुग्रंथसाहिब, बाइबिल और अनेक ऋषि-महार्षियों की वाणी में मिलता है। मैं मानता हूं, यदि यह सूत्र जीवनगत हो जाए तो धरती पर स्वर्ग उतर आए, अमन-चैन की धार बह चले। समाज में कोई किसी का शत्रु न रहे, सब मैत्री के धागे से बंधे हुए रहें, भाई-भाई बनकर जिएं।
पर कठिनाई यह है कि आदमी स्वयं को प्रकृति-विजेता मान रहा है। अपने अहंकार के उन्माद में वह ऋषि-मुनियों की वाणी की उपेक्षा करके गलत मार्ग पर बढ़ रहा है। आश्चर्य, इस पर भी वह शांति पाने की इच्छा करता है!
रोगी वैद्य के पास गया। उसने उसकी नाड़ी देखी। उसके जीर्ण ज्वर था। वैद्य ने कहा-'तुम्हारी बीमारी तो मिट जाएगी, पर कड़वी दवा लेनी होगी।' रोगी ने दवा ले ली और घर चला आया। दवा कड़वी जान उसने उसका एक दिन भी सेवन नहीं किया। फिर बीमारी कैसे मिटती? वह स्वास्थ्य-लाभ कैसे प्राप्त करता ? हिंसा और शांति
इसी प्रकार जो लोग शांति के तो इच्छुक हैं, पर शांति की सही राह
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आगे की सुधि लेइ
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