________________
था। उन्होंने सोचा कि मेरा किसी ने कुछ भी अपराध नहीं किया, फिर भी यह व्यक्ति क्षमा कैसे मांग रहा है। इसी चिंतन में वे ध्यानस्थ खड़े रहे। मुनि के मौन ने राजा संजय को और अधिक भयभीत बना दिया। वह फिर बोला-'महामुने ! मैंने आपका मृग मार दिया है। अब भविष्य में ऐसा काम नहीं करूंगा। आप संसार को अभय बनाते हैं, मुझे भी अभय बनाएं।'
अब मुनि गर्दभाली ने समझा कि वह भयभीत मुझसे नहीं, स्वयं के अकृत्य से है। यह सुंदर अवसर है इसे बोध-पाठ देने का। मुनि ने आंखें खोलीं। देखा, राजा का शरीर भय से कांप रहा है। मुनि ने पूछा-'तुम क्या चाहते हो?' कातर स्वर में राजा ने कहा-'अभय।' मुनि ने राजा का मानस झकझोरते हुए कहा-'तुम दूसरों को भयभीत बनाते हो और स्वयं अभय रहना चाहते हो, यह कैसे हो सकेगा?' राजा ने अत्यंत दीनतापूर्वक कहा-'मैं आपकी कृपा चाहता हूं।' मुनि ने राजा को पुनः झकझोरा-'तुम पर कोई रोष नहीं है, पर तुम बताओ तो सही कि क्या जानवर अभय बनना नहीं चाहते हैं, तुम्हारा क्या अधिकार है कि तुम किसी प्राणी को भयभीत बनाओ।' राजा ने कहा-'मुने! आप प्रतिबोध दें कि अब मुझे क्या करना चाहिए ?' मुनि ने राजा को प्रेरित करते हुए कहा-'अब तुम संकल्प करो कि मैं जिंदगी में कभी शिकार नहीं करूंगा, किसी को भयभीत नहीं बनाऊंगा।' राजा बोला-'मैं आपकी साक्षी से यह प्रतिज्ञा करता हूं कि अब जीवन में कभी शिकार नहीं करूंगा।' मुनि ने कहा-'देखो प्राणी के भय का कारण हिंसा है। तुमने हिंसा छोड़ने का संकल्प कर लिया है, अतः समझ लो कि भय भी तुम्हें छोड़ देगा।'
राजा संजय को आश्वासन मिला। मुनि को प्रणाम निवेदन करके वह अपने नगर की ओर बढ़ गया।
इस घटना का मर्म यह है कि अभय और अहिंसा दोनों एक ही हैं। जो कोई व्यक्ति भयभीत होता है, वह स्वयं की हिंसात्मक प्रवृत्तियों के कारण ही होता है। अतः अभय बनने के लिए हिंसा से उपरत होना जरूरी है। एक भ्रांति
जैन-धर्म ने अहिंसा पर बहुत अधिक बल दिया है। यद्यपि अहिंसा को सभी धर्म मानते हैं, पर जैन-धर्म ने इसका खास तौर से विशद विवेचन किया है, लेकिन जैन-धर्म के बारे में एक भ्रांति फैल गई है कि वह
जनतंत्र और धर्म
। १३३.
Jain Education International
For Private & Personal Use Only
www.jainelibrary.org