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से भीग गया है। बस, उसकी कंजूसवृत्ति को अभिव्यक्त होने का मौका मिल गया। वह दुकानदार को संबोधित करके बोला-'भाई! मेरा रुपया बिछुड़ना नहीं चाहता। देखो, इसी लिए रो रहा है। अब मैं इसके टुकड़े कैसे कर दूं?'
___ मैं मानता हूं, सब व्यक्ति कंजूस और अनुदारवृत्तिवाले नहीं होते, पर कुछ-एक व्यक्तियों का गलत व्यवहार और आचरण भी पूरे वातावरण को दूषित बनाने का कारण बनता है। ऐसे व्यक्तियों को चाहिए कि वे अपनी वृत्ति बदलें। इससे न केवल धर्म बदनाम होने से बचेगा, बल्कि वे स्वयं भी बहुत लाभान्वित होंगे।
यथार्थ के धरातल पर कोई व्यक्ति यदि जैन-धर्म का अहिंसा का सिद्धांत समझने का प्रयास करे तो वह पाएगा कि यह सिद्धांत बहुत व्यापक और व्यावहारिक है। इसे स्वीकार करके चलनेवाले के सामने किसी प्रकार की उलझन या कठिनाई नहीं रहेगी। आज अंतरराष्ट्रीय क्षेत्र में यह सिद्धांत तेजी से प्रतिष्ठित होता जा रहा है। अपेक्षा है, जैन कहलानेवाले भाई-बहिन इसका मूल्य समझें और इसे जीवन-व्यवहार में उतारें। इससे उनके जीवन को एक नई दिशा मिल सकेगी।
सिरसा १ मार्च १९६६
आगे की सुधि लेइ
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