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मनुष्य; जिसकी मानवीय संवेदना मौजूद है, वह ग्राहक के साथ कभी धोखाधड़ी कैसे करेग; उससे अनुचित लाभ कैसे कमाएगा।
___ हालांकि मैं मानता हूं कि सब व्यापारी बुरे नहीं होते, पर कुछ-एक गलत व्यापारी भी पूरे व्यापारी-वर्ग को बदनाम कर देते हैं। कुछ व्यापारी तो इस तरह के भी मिल सकते हैं, जो मंदिर में जाकर प्रार्थना करते हों-'प्रभो! आज तो ऐसी कृपा करें, जिससे ग्राहक से मनचाहा लाभ कमाऊं। ऐसा मूर्ख ग्राहक भेजें, जो पांच के पचीस दे।..'
_आप कहेंगे कि ऐसा भी कोई व्यापारी होता है क्या। व्यापारी बंधुओ! यह संसार है। यहां किसी बात की नास्ति नहीं है। हम किसी संभावना से सर्वथा इनकार नहीं कर सकते, पर इतना स्पष्ट है कि ऐसे व्यापारी पूरे व्यापारी-वर्ग के लिए कलंक हैं, व्यापार के लिए अभिशाप हैं। ____ मैं पूरे व्यापारी-वर्ग से इस बात की प्रेरणा करना चाहता हूं कि वह अपना आत्मालोचन करे। जिस-किसी व्यापारी के व्यापार में कोई गलत प्रवृत्ति चल रही है, वह उसे अविलंब बंद करे। मैं पूछना चाहता हूं कि जो व्यवहार वह अपने लिए नहीं चाहता, वह व्यवहार दूसरों के लिए हितकर कैसे होगा। गीता में कहा गया है-आत्मनः प्रतिकूलानि, परेषां न समाचरेत्। मैं मानता हूं, हजारों ग्रंथों का सार यही है। यदि व्यापारियों की धारणा इससे विपरीत जमी है और वे यह मानते हैं कि गलत काम किए बिना हमारा धंधा ही नहीं चल सकता तो यह चिंतन का घोर दारिद्र्य है, मानवता का पतन है।
व्यक्ति से गलती हो सकती है और उसका सुधार भी हो सकता है, पर गलती को गलती न मानना आस्था की त्रुटि है। मैं ऐसे अनेक व्यक्तियों को जानता हूं, जिनकी प्रामाणिकता में पूर्ण निष्ठा है और वे अपने कार्यक्षेत्र में सफल भी हो रहे हैं। हालांकि आदर्श ईमानदार बनना बहुत कठिन बात है, कोई-कोई व्यापारी ही इस भूमिका में रह सकता है, तथापि विचारों में हीनता न हो, आस्था असम्यक न हो, यह तो सबके लिए आवश्यक है। यानी विचार सदा ऊंचे रहें और उन्हें आचार में जितना ढाला जा सके, उतना ढालने का प्रयत्न किया जाए। अणुव्रत : आदर्श तक पहुंचने का माध्यम
अणुव्रत क्या है? उस आदर्श तक पहुंचने का माध्यम ही तो है। अणुव्रत कहता है कि व्यक्ति अपने आचार और व्यवहार से धार्मिक बने।
धर्म और व्यवहार
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