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सी लग सकती है, पर गहराई से देखा जाए तो अत्यंत मूल्यवान है। जीवन-निर्माण का यह सर्वाधिक महत्त्वपूर्ण सूत्र है । मैं अत्यंत विश्वास के साथ कह सकता हूं कि जो विद्यार्थी यह एक सूत्र संस्कारगत कर लेता है, उसके जीवन-निर्माण की दिशा स्वतः बन जाती है।
जीवन-निर्माण का दूसरा सूत्र है - खान-पान का विवेक । खाद्य-संयम के अभाव में जीवन तो पतनोन्मुख होता ही है, विद्या भी फलीभूत नहीं होती। इसी लिए किसी अनुभवी आचार्य ने कहा है
खाटो खारो खोपरो, सुपारी नै तैल । जो चेला ! पढ़णो हुवै, तो इत्ता आगा ठेल ॥
विद्यार्थी यह बात गंभीरतापूर्वक समझें कि अधिक खट्टी और मिर्च - मसालेदार चीजें उनके लिए हितकर नहीं हैं। ये स्वास्थ्य को बिगाड़ती हैं। और विद्याध्ययन में भी बाधक बनती हैं। इस संदर्भ में विद्यार्थियों के अभिभावकों को भी चिंतन करने की जरूरत है । विद्यार्थियों को सात्त्विक भोजन तभी मिल सकता है, जब उनका स्वयं का भोजन सात्त्विक होगा ।
समय का उचित मूल्य आंकना जीवन-निर्माण का तीसरा सूत्र है । मैं मानता हूं, एक अपेक्षा से समय से अधिक कीमती संसार में दूसरा कोई तत्त्व नहीं है। जो समय बीत जाता है, वह किसी कीमत पर वापस नहीं मिलता, जबकि धन, स्वास्थ्य आदि प्रयत्न करने से पुनः प्राप्त किए जा सकते हैं। नष्ट हुई प्रतिष्ठा भी कुछ हद तक पुनः मिल सकती है। इसलिए विद्यार्थियों को एक- एक क्षण का पूरी तत्परता एवं जागरूकतापूर्वक उपयोग करना चाहिए। एक क्षण भी व्यर्थ खोना समझदारी की बात नहीं है। जो विद्यार्थी समय के प्रति जागरूक नहीं होते, उनके लिए बाद में अनुताप करना ही शेष बचता है।
यों तो जीवन का हर क्षण ही महत्त्वपूर्ण है, पर पचीस वर्ष की उम्र तक का समय तो अत्यधिक महत्त्वपूर्ण है। एक दृष्टि से यह जीवन का स्वर्णिम काल है। यह वह समय है, जिसमें व्यक्ति के पूरे जीवन की नींव पड़ती है, जीवन का निर्माण होता है। मैं कई बार सोचता हूं, यदि मुझे यह पचीस वर्षों का समय मिल जाए तो न जाने मैं क्या क्या करूं, पर यह अब मिलने को कहां! विद्यार्थियो ! यह केवल मेरी बात नहीं है, बल्कि बहुत-से लोग भी ऐसा ही सोचते हैं। कभी आप लोग भी ऐसा ही सोच सकते हैं, पर यह सोचना, सोचने तक ही सीमित रहता है, साकार नहीं हो
विद्यार्थी और जीवन-निर्माण की दिशा
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