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राजनीतिक दृष्टिकोण है या कोई दूसरा चिंतन है, खाने के लिए रोटी और लेटने के लिए साढ़े तीन हाथ जमीन से अधिक का क्या उपयोग है। __याचक राजा के पास गया। राजा दानी था। उसने कहा-'जो इच्छा हो, वह मांग लो।' याचक ने जमीन मांगी तो राजा ने कहा-'सूर्योदय से चलो और सूर्यास्त तक वापस उसी स्थान पर आ जाओ। बीच में जितनी जमीन का अनुमापन कर सकोगे, वह तुम्हारी हो जाएगी।'
याचक ने खाना-पीना छोड़कर दौड़ शुरू की। चलते-चलते थक गया, पर लोभ का संवरण नहीं कर सका। दौड़ता ही गया, दौड़ता ही गया......लंबा मार्ग तय करने के बाद लौटने लगा तो श्वास बुरी तरह फूलने लगा। वह चल नहीं सका। बची-खुची शक्ति बटोरकर जैसे-तैसे फिर भी चला, पर थोड़ी दूर चलने के बाद ही गिर पड़ा। गिरते ही उसके प्राण-पखेरू उड़ गए।
उधर राजा उसकी प्रतीक्षा कर रहा था। उसने राजपुरुषों से कहा-'वह व्यक्ति अभी तक आया नहीं। तलाश की जाए।' राजपुरुषों ने खोज की तो उसकी लाश पड़ी मिली। राजा वहां पहुंचा और बोला-'मनुष्य की लालसा कितनी ही तीव्र क्यों न हो, आखिर तो वह साढ़े तीन हाथ जमीन पर ही लेटेगा!'
व्यापारी बंधुओ! मैं भी आप लोगों से पूछना चाहता हूं कि कहीं अति लालसा का भूत ही तो आपके सिर पर सवार नहीं हो गया है। मेरे अभिमत में अर्थपति बनने का लक्ष्य गलत है। धन का अनावश्यक संग्रह अनेक विकृतियां एवं कठिनाइयां पैदा करता है, पर आंतरिक लगाव टूटना सहज भी तो नहीं है। जब तक वह लगाव मौजूद रहता है, तब तक गलत काम करके धन संचय करने की प्रवृत्ति चलती रहती है; सीधे-सादे लोगों को ठगने का प्रयास होता रहता है; तौल-माप में गड़बड़ होती रहती है। आंखों के सामने ग्राहक को बराबर तौलकर दिया जाता है, पर घर जाकर जब वह तौलता है तो वजन कम मिलता है। इसी लिए आम जनता में धारणा बन रही है कि व्यापारी बेईमान हैं। समय की नब्ज पहचानें
हालांकि इस बात का एक दूसरा पहलू भी है। व्यापारियों के बुरे या बेईमान बनने का सारा दोष उन्हें ही नहीं दिया जा सकता। स्वयं सरकार भी इसके लिए कम उत्तरदायी नहीं है। उसकी व्यापारी-वर्ग पर
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- आगे की सुधि लेइ
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