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चारित्रिक गिरावट क्यों
_आज लोगों का चरित्र गिरता हुआ दिखाई दे रहा है, पर यह भी निष्कारण नहीं है। स्थितियां इतनी जटिल हो रही हैं कि जीना दूभर हो गया है। कानून का भार और दूषित वातावरण का दबाव इस सीमा तक बढ़ रहा है कि चाहकर भी व्यक्ति के लिए नैतिक बने रहना बहुत कठिन हो रहा है। आपको यह सुनकर संभवतः आश्चर्य होगा कि सांसद और विधायक भी कानून का संपूर्ण रूप से पालन नहीं करते, जबकि वे स्वयं कानून के निर्माता हैं। एक बार पं. नेहरू के पास श्रीप्रकाश जैन गए और बोले-'हम भ्रष्टाचार की जड़ें उखाड़ने की बात करते हैं, पर रिश्वत बिना तो हमारा काम भी नहीं चलता। ऐसी स्थिति में औरों से क्या आशा कर सकते हैं? अंधकार में प्रकाश-किरण
यह कोई एक-दो व्यक्तियों की बात नहीं, अपितु व्यापक समस्या है। बहुत-से व्यक्ति सदाचार के पथ पर चलना चाहते हैं, पर अनेक विवशताओं के कारण चल नहीं पाते। इस स्थिति के बाद भी जनता धर्म की बात सुनना चाहती है, दुराचार, दंभ एवं धोखे से स्वयं का पिंड छुड़ाना चाहती है और सही रास्ता बतानेवालों का संपूर्ण समर्पण के साथ अनुसरण करने के लिए भी तैयार रहती है, यह अंधकार में भी प्रकाश की एक किरण है।
हम दिल्ली से चले और नोहर तक आए हैं। रास्ते में जहां भी ठहरे, वहां जनता का उत्साह देखते ही बनता था। फिर एक बात और हैआनेवाले लोग मात्र दर्शक नहीं थे, जिज्ञासा एवं श्रद्धाभाव से अनेक लोगों ने हमसे संपर्क भी किया। उनकी चाह थी कि हमें कोई मार्ग मिले। हम तत्परता से उस पर चलने के लिए तैयार हैं। इससे हमें लगा कि जनता में नैतिकता के प्रति आज भी आकर्षण है।
___ आज की हमारी सभा में व्यापारी ज्यादा हैं। व्यापारी भले बड़े हों या छोटे, काफी समझदार होते हैं। वे हर काम में सामंजस्य बिठाना जानते हैं। इसी लिए मैं कहता हूं कि स्याद्वाद एक प्रकार का वाणिज्य है तथा आग्रह कृषि है। कृषक हल खींचता रहता है, जबकि दुकानदार ग्राहक से बात करके उसे अनुकूल बना लेता है। कुछ लोग तो इसके लिए तंबाकू, भंग और यहां तक कि शराब भी काम में लेते हैं।
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- आगे की सुधि लेइ
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